धरती ने लिखी अनेक दर्द भरी पाती▪▪▪
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धरती ने लिखी अनेक दर्द भरी पाती।
द्रवित मगर हुई ना इन मेघों की छाती।।
मस्त गूँजते-फिरते,आवारा करते ठिठोली।
खोलते ही नहीं कृपण से ये अपनी झोली।। अनपढ़ है या ये निष्ठुर हृदय बता तो सखी। रस भरे आकंठ मगर फिर भी करते दुःखी।। कृषक रोते देख खेतों की हालत लुटी-पिटी। वर्षा बिन घर सिके कैसे चूल्हे में अब रोटी।।
बाल,युवा,वृद्ध देखते सभी लगा आकाश टकटकी।
एक बूंद भी अमृत सृदश क्या कहीं धरती पर टपकी।।
नृत्य की आकांक्षा मयूर की भी अधूरी रह गई।
आम्र वृक्ष की डालियाँ बिन झूलों के पड़ी सूनी।।
प्रबल-ताप,श्वांस- श्वांस विषघर सी हर घड़ी फुंफकारती।
क्षत-विक्षत वसुंधरा अस्मिता रक्षाथॆ,जन-जन पुकारती।।
@नलिन#तारकेश
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Friday, 28 June 2019
धरती ने लिखी अनेक दर्द भरी पाती
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