Tuesday, 25 June 2019

175-गजल

शहर में अब तेरे मोम दिल दिखते नहीं हैं।
लोग तो यहां अजमत भरे बसते नहीं हैं।।
बादल भी नक्शे कदम अब तेरे ही बढ रहे। जुल्फों की मानिंद खुल के बरसते नहीं हैं।। कंक्रीट के जंगल जबसे आदम बसने लगा। लबों पर महकते फूल कहीं दिखते नहीं हैं।। मासूम चेहरे वहशी निगाहों से डरे दिख रहे। आंखों में इंद्रधनुष इनके चमकते नहीं हैं।।
टकटकी लगाए आसमां कब तलक देखें। फरिश्ते भी अब तो जमीं पर उतरते नहीं हैं।। कुछ कहें,कुछ सुनें प्यार के पेंच लड़ाते।
मेले दिल की चौपाल अब लगते नहीं हैं।।
अंधेरे रास्ते बरगलाते चेहरे बदल के सदा।
शुक्र"उस्ताद"का कदम ये फिसलते नहीं हैं।।
@नलिन#उस्ताद

No comments:

Post a Comment