का चुप साधि रहा बलवाना
☆☆☆☆ॐ☆ॐ☆ॐ☆☆☆☆☆
आओ आत्मीय तोड़ दो कारा अब अपनी।
क्षुद्र,संकुल,कल्मष,दृष्टिदोष की अब सारी।
बैठ शांत,गहन आत्ममंथन करो पुनः पुनः।
और विचारो क्या है सत्य पहचान तुम्हारी।
क्यों विचरते हो,झूठी खाल ओढ प्रपंचकारी।
तुम नहीं हो कतई भी,मिमयाते डरते मेमने।
तुम तो हो मृगेन्द्र शावक,पराक्रमी अलबेले।
सो जरा तनिक ठिठक,पहचान लो खुद को।
देख अपना स्वरूप निर्मल आत्मसरोवर में।
और फिर लंबी गर्जना भर आश्वस्त कर लो।
अपने अस्तित्व की इस ओजमयी प्रकृति को।
कनक भूधराकार देह अब अपनी फुला कर।
पवनतनय सदृश पेंग भरो बड़े मुक्त भाव से।
अनन्त नीला आकाश देखो बुलाता प्यार से।
तुमने ही तो करना है राम काज छूटा अधूरा।
अवतरण भी तो तभी हुआ है जग में न्यारा।
अतः कहो कौन सो काज कठिन जग माहीं।
जो है असंभव और नहि होइ तात तुम पाहीं।
@नलिन#तारकेश
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Monday, 3 June 2019
जय हनुमान
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