Monday, 17 June 2019

168-गजल

बच्चा बन रहा मन जैसे-जैसे बुढ़ापा बढ़ रहा।
मना किया जो चारागर*ने वही खाना बढ़ रहा।।*डाक्टर
दर्द की गठरी उठाए सभी तो चल रहे हैं सफर में।
कौन किस से पूछे गम ये कितना सारा बढ रहा।।
सीधे सच्चे रास्तों पर चलना अब किसे मंजूर भला।
चूसने खून जौंक सा सबमें है उकसावा बढ रहा।।
दलदल में इंसानियत के फड़फड़ा रहे रिश्ते सारे।
तरक्की का ये सिलसिला अजब रोजाना बढ  रहा।।
लगाए न कभी दरख्त तो क्या करें "उस्ताद"हम।
झेलना तो पड़ेगा जो दिन-ब-दिन पारा बढ रहा।
@नलिन#उस्ताद

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