कुछ भी हो कम से कम यह सुकूं तो रहता है।
जमीं से जुड़ा आदमी नहीं आसमां से गिरता है।।
कहो कौन यहां भला किसको सुधार सकता है।
दुनियावी काई पर जब हर कोई फिसलता है।।
थपथपाने में पीठ कंजूसी बरतते हैं बेवजह लोग।
जबकि इससे तो हरेक का हौसला ही बढ़ता है।।
उसकी उधारी चढ़ी है मुझ पर ना मेरी उस पर।
जाने भला क्यों हर शख्स संगदिल ही मिलता है।।
लिखे बहुत ही गहरा मगर बड़ी सादी जुबान में।
शाइर समझदार ख्याल उसका बड़ा रखता है।।
सियासत इस क़दर घुस गई है घरों में हमारे।
अब तो बेटा भी सवाल पर सवाल दागता है। मसले अलगाव के भाइयों के उबलने लगे।
लो अब खूं भी भाप बन पानी सा उड़ता है।।
गालिब,मीर,जौंक होंगे और भी कई बड़े नामचीं शाइर।
सुखनवर"उस्ताद"तो रब से इमला लिया करता है।।
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Wednesday, 5 June 2019
157-गजल
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