Thursday, 6 June 2019

158-गजल

कहना हर बात सलीके से ये भी एक हुनर है।
वरना कहो होता कहां सबका ऐसा जिगर है।।
जमाने के पेंचोखम से बच साफ निकल जाना।
खुदा कसम बड़ी मुश्किल यहां की हर डगर है।।
भरा है जो लबालब रूहानी इल्म से गले तक।
भला कहो कहां उसे जमाने की फिकर है।।
छाप छोड़ दी दिले दहलीज उसने आज मेरी।
सज-संवर जब वो रचा गया पांव महावर है।।
घुंघरू सी बज के जब महकती है हंसी उसकी।
दिले धड़कन फिर करती जुगलबंदी झर झर है।।
तराशनी होती है सिफत*अपनी रियाज के जरिए।*गुण
कहे हर निगाह यूं ही नहीं उस्ताद कद्दावर है।।

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