Saturday, 15 June 2019

घन घमंड नभ गरजत घोरा

घन घमंड नभ गरजत घोरा
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जेठ की प्रचंड गर्मी से क्या बच्चे क्या बूढे सभी हलकान हो जाते हैं। भारत के मैदानी इलाकों में तो पारा जैसे इस मौसम में सभी हदों को पार करने को बावला रहता है।लू और अंधड़ के थपेड़ों से जनजीवन बेहाल हो त्राहि-माम,त्राहि-माम,करने लगता है।अप्रैल मई-जून
ये तीन माह तो काटने मुश्किल हो जाते हैं। दिन लंबे होते हैं और रातें छोटी तो देर रात जब कुछ मौसम सुहावना होने लगता है तब कहीं बिस्तर में जा पांव पसारने की हुध आती है।लेकिन फिर जल्दी ही सुबह भगवान भास्कर की रश्मियां अपनी दस्तक देने लगती हैं।अगर उनकी बात नहीं मानी गई तो जल्दी ही वो अपनी गर्माहट और उष्णता से हमें बिस्तर छोड़ने पर मजबूर कर देती हैं। हालांकि गर्मी का ताप जब कुछ अधिक ही बढ़ने लगता है और वह जीवों के लिए असहनीय हो जाता है तो प्रकृति अपनी ममता,उदारता के वशीभूत द्रवित हो जाती है। उसकी करुना सूरज की किरणों द्वारा अवशोषित हो मेघों में  छिपाई गई अकूत जल राशि को पिघला देती है और लो पृथ्वी के आंचल को भिगो देने के लिए वर्षा की बूंदों की झड़ी झरझराने लग जाती है।पवन जो कल तक तप्त और मारक लगती थी आज वो शीतल,मृदुल थपकी देती है। आकाश में उमड़-घुमड़ गरजते बादलों का स्वर मानो जैसे मृदंग और पखावज जैसे वाद्यों का मुकाबला करने लगता है और लगे हाथ इसी बहाने पृथ्वीवासियों का बरखा ऋतु के आगमन पर खैरमकदम करता प्रतीत होता है। दादुर,मोर,पपीहा जैसे जीव तो वर्षा ऋतु के आगमन से विशेष प्रसन्न होते ही हैं अन्य पशु-पक्षी,जीव-जंतु भी राहत की सांस लेते हैं। अब ऐसे में मनुष्य के उल्लास की तो बात ही क्या कहीं जाए।उसने  ही तो इंद्रदेव से मनुहार की थी।हजारों मन्नतें मांगी थी कि काले मेघा पानी दे और यह तपन यह  गरमी की भीषणता कुछ कम हो। तो अब जब सावन-भादो बरसने लगे तो वह तो उस फुहार में अपने तन-मन को भिगो देने को आतुर देखेगा ही दिखेगा। सावन के झूले में बैठ मदमस्त हवा के पंखों में उड़ान भर बादलों के कानों में कुछ रसीली मृदुल शरारत भरी कानाफूसी जरूर करना चाहेगा। फिल्मी दुनिया में तो वर्षा ऋतु को हाथों हाथ लिया जाता है। बिना बरखा की झड़ी लगाए फिल्म की पटकथा बंजर भूमि के सदृश लगती है। निर्देशक,निर्माता,लेखक,दर्शक सभी बिना वर्षा के कुम्हला जाते हैं।खासतौर से जब फिल्म पटकथा रोमांस को दर्शाना चाहती हो। यूं बात मुफलिसी की हो दुःख की हो या घटना को नाटकीय मोड़ देने की हर जगह दक्ष निर्देशक के लिए बरसात एक नया आईडिया लेकर आती है। तभी तो बारिश पर आधारित गीतों की लोकप्रियता का ग्राफ कुछ ज्यादा ही ऊपर है। "बरसात में तुमसे मिले हम सजन तुमसे मिले हम", "सावन के झूले पड़े हैं तुम चले आओ","गरजत बरसत सावन आयो रे", "आज मौसम बड़ा बेईमान है","जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात", "डम डम डिगा डिगा","घनन घनन घन घिर आए बदरा" जैसे ढेरों कणॆप्रिय गाने अपनी तान से सभी को मोहित कर देते हैं और दर्शकों की आंखों में भी जाने कितनी सपनों की बरसात कभी मंद तो कभी गरज-गरज कर बरसने लगती है।
तीक्ष्ण गरमी से अकुलाई पृथ्वी को तो वर्षा की बूंदे अमृत समान लगती हैं जो उसकी मां प्रकृति अपने स्नेह आंचल से उस पर बरसाती है।नदियों, तालाब, पोखरों,कुओं में एक नई रवानगी,एक नई उल्लासित थिरकन पैदा हो जाती है। पेड़-पौधे जो शुष्क हो औंधे पड़े दिखते थे वह भी वर्षा की संजीवनी से चेतन हो लहलहाने लगते हैं। पात-पात कोमल और चिकने हो बाल शिशु सी मुस्कान बिखेरने लगते हैं। पूरी धरती हरी-भरी हो जाती है। तभी तो यह कहावत बनी कि "सावन के अंधे को हरा-हरा ही सूझता है"।पशुओं को खाने पीने की प्रचुर मात्रा मिलती है तो वह भी हष्ट पुष्ट हो सुडौल हो जाते हैं ।अब जब पृथ्वी इस  रितु को देख प्रसन्न हो अपना अन्नपूर्णा स्वरूप प्रदर्शित करती है तो मानव को अपना भविष्य भी उज्जवल दिखता है क्योंकि वह आश्वस्त हो जाता है कि अच्छी वर्षा खाद्यान्न की कमी नहीं होने देगी। वैसे भी भारत जैसे कृषि प्रधान देश में वर्षा ऋतु का सही समय पर आना और यथोचित होना किसी वरदान से कम नहीं है।यह जन-जन की समृद्धि का प्रतीक है। यह सामान्य कृषक मजदूर से लेकर बड़े बड़े उद्योगपति, नेता,अधिकारी तक के चेहरे पर उल्लास की मोहर लगाने की सामर्थ्य रखती है। तभी तो सभी अपने-अपने ढंग से इस रितु का लुत्फ उठाने को तत्पर दिखते हैं। कहीं गरमा-गरम समोसा,पकौड़ी, कॉफी,चाय की चुस्कियों के साथ,दोस्तों की गपशप का सिलसिला कहीं झूले की पेंग बढ़ा आकाश को बाहों में भरने की कोशिश तो किसी का लॉन्ग ड्राइव पर निकलना एक अलग ही माहौल बनाता है। कुछ भीगते हुए छतरियों में संभल-संभल कर चलना या कि छत या आंगन में तेज बौछारों में नाचने लगना इन सबका ही तो मस्त नजारा पेश करता है, वर्षा ऋतु का आगमन।और जब क्योंकि वर्षा की फुहारों का मौसम आने ही वाला है तो आइए अभी से समां बांधने के लिए कमर कस लें और थिरकने के लिए तैयार रहें। मौसम और दस्तूर दोनों ही गलबहियां डाले आपका इंतजार कर रहे हैं।
@नलिन #तारकेश

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