Sunday, 23 June 2019

173-गजल

हम तो मयखाना बनकर घूमते हैं।
हर किस्म की मय पास रखते हैं।।
जैसी भी हो तबीयत यार तुम्हारी।
सुधारने का दावा हर हाल करते हैं।।
तबले की गमक,बाँसुरी के पोर पर। उंगलियां हुनर से हम बड़ी फेरते हैं।।
बंदापरवर हमें चाहने का शुक्रिया।
सजदे में तेरे तो हर बार झुकते हैं।।
रंजोगम परेशानी अपनी सभी दे दो।
जख्म"उस्ताद"सब करीने से भरते हैं।।
@नलिन#उस्ताद

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