Saturday, 15 June 2019

167-गजल

यूं चला तो जाता हूं चारागर के पास अक्सर
दर्दे जिक्र मगर भूल जाता हूं खास अक्सर।। ढूंढता हूं जब किसी को भी बड़ी शिद्दत से। मिल जाता है वो मुझे अपने पास अक्सर।। हम क्या थे और क्या हो गए सोचो तो जरा। भुला दिया पर खुद हमने इतिहास अक्सर।।
जमींनी हकीकत से जो कोसों दूर भटके।
रहता है यार उन्हें ही रोग छपास अक्सर।।
झन्डाबरदार जो हर गली सेक्यूलर मोर्चे के आजकल।
करते हैं वही आलिम मक्कारी की बकवास अक्सर।।
गढ़ रहे इबारतें गजब हौंसलों की दिव्यांग हर दिन।
जिनका उड़ाते रहे थे हम"उस्ताद"उपहास अक्सर।।
@नलिन#उस्ताद

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