Wednesday, 19 June 2019

169-गजल

तेरी हर बात का हम इस कदर ऐतबार करते हैं।
सूरज को भी कहे चाँद तो कहाँ हम जाँचते हैं।।
कोई कहे ना कहे दो लफ्ज़ भी इकराम* में।*सम्मान
हुनर को यहाँ तेरे सभी अच्छे से मानते हैं।।
जलवाफरोज है जो आज वो कल न रहेगा वैसा ही।
नुकता*-ए-वक्त की अदा महज आलिम (ज्ञानी)ही जानते हैं।।*पते की बात
रहा ना तू बन कर मेरा ये हो चाहे मुकद्दर मेरा।
आज भी हम तो मगर तुझे उतना ही चाहते हैं।।
नाम की पोथियाँ जिसकी हर घड़ी बाँच रहे लोग। 
रूहानी थाप पर उसकी हम तो चुपचाप नाचते हैं।।
हवा करे तो करे मुखबरी "उस्ताद" परवाह नहीं हमें।
नूरे-खुदाई उसकी ही इजाजत तो लोगों में बाँटते हैं।।
@नलिन#उस्ताद

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