Monday, 17 June 2019

कविता

बाॅध तमसे आज और खोल छाती के बटन सारे।
चल पड़े देने चुनौतियों को मात मिलके हम सारे।
मुस्तकबिल हमें अपना संवारना अच्छे से आता है।
बुलंदियों को तभी तो चूमने तैयार सभी हम सारे।
खौफ है नहीं जरा भी पहाड़ों और खाईयों का।
पाट देंगे ये फासले मालूम है मिलकर हम सारे।
आफताब*सी रोशनी कारनामों में दिखेगी हमारी।*सूरज
चांद सी नरमी दिलों में लिए बढ़ रहे हम सारे।
लहूलुहान हो रहे तो कम से कम सुकून ये तो है।
नई नस्ल के खातिर बनाने जा रहे नए रास्ते हम सारे।
"उस्ताद"हर दिल में मोहब्बत ही बस एक उमड़े।
यही सोच झंडा उठाए कंधा मिला रहे हम सारे।।
@नलिन#उस्ताद

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