Saturday, 29 June 2019

177-गजल

सारा जमाना मेरा इकराम* करता है।*सम्मान
तेरे प्यार का ये हंसी असर दिखता है।।
मैं सच में कहां चाहता हूं तुझे दिल से।
शिद्दत से मगर तू तो मुझे चाहता है।।
हर घड़ी,हर कदम पर आगाह करना।
इतना कौन यहां मेरी फिक्र करता है।।
हाथ झटक मगर ये प्यार भरा तेरा।
यूं ही मन मेरा ता-उम्र भटकता है।।
भूला रहूंगा तुझे मैं दुनिया की चाहतों में। हाँकना सही राह फजॆ तेरा ही बनता है।। "उस्ताद"जब परेशान है तू इतना मेरे लिए। बता क्यों नहीं गोदी बिठा मुझे चलता है।।
@नलिन#उस्ताद

Friday, 28 June 2019

धरती ने लिखी अनेक दर्द भरी पाती


धरती ने लिखी अनेक दर्द भरी पाती▪▪▪
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धरती ने लिखी अनेक दर्द भरी पाती।
द्रवित मगर हुई ना इन मेघों की छाती।।
मस्त गूँजते-फिरते,आवारा करते ठिठोली।
खोलते ही नहीं कृपण से ये अपनी झोली।। अनपढ़ है या ये निष्ठुर हृदय बता तो सखी। रस भरे आकंठ मगर फिर भी करते दुःखी।। कृषक रोते देख खेतों की हालत लुटी-पिटी। वर्षा बिन घर सिके कैसे चूल्हे में अब रोटी।।
बाल,युवा,वृद्ध देखते सभी लगा आकाश टकटकी।
एक बूंद भी अमृत सृदश क्या कहीं धरती  पर टपकी।।
नृत्य की आकांक्षा मयूर की भी अधूरी रह गई।
आम्र वृक्ष की डालियाँ बिन झूलों के पड़ी सूनी।।
प्रबल-ताप,श्वांस- श्वांस विषघर सी हर घड़ी फुंफकारती।
क्षत-विक्षत वसुंधरा अस्मिता रक्षाथॆ,जन-जन पुकारती।।
@नलिन#तारकेश

Thursday, 27 June 2019

मां शारदा

माँ शारदा
☆☆☆☆☆ॐ☆☆☆☆☆
साहित्य,संगीत,कला की अप्रतिम त्रिवेणी।
हृदय में बहती हमारे जब भी ये निर्झरिणी।।
तन-मन-आत्मा बनती तब देखो नारायणी।
रास-मोद थिरकती फिर संग वो चक्रपाणि।।
इंद्री सब संकुचित,शिथिल मूक होती वाणी।
क्या कहे,कैसे कहे उस क्षण की दशा प्राणी।
अवस्था,नव-अबूझी परे सत,रज,तम गुणी।
दर्शन परम अलौकिक सप्तलोक आरोहिणी
आनंद परमानंद की बहे रसधार कल्याणी।
सुध-बुध खो सरलता से पार होती वैतरणी।।
सहज समाधि उस क्षण चमकती नीलमणी।
त्रिकुटी निमॆल प्रकाश बने प्रत्यक्ष धारिणी।।
नाद ओंकार गूंज,गूंजती तारकेश विलक्षणी।
भावविह्वल कृपा अभिसिंचित हे मां ब्रह्माणी
@नलिन#तारकेश

176-गजल

ज़ख्मी दिल की हमारे तुरपाई हो गई।
उनसे जो उलफत*भरी सगाई हो गई।।*प्रेम
गुफ्तगू कहां अभी तो मिले भी न थे।
जाने कहां से ये बीच तनहाई हो गई।।
ये इश्क नहीं हमारे बस का हुजूर जरा भी। सौदागरी तो आज इसकी कमाई हो गई।। सितारों का खौफ दिखाकर लूटना।
चलन में अजब ये पंडिताई हो गई।।
हर किसी को आज तो खुद से है मतलब। रिश्ते-नातों की बात एक बेहियाई हो गई।। लीक-लीक चलने की कभी आदत न रही।
उस्ताद परवाह किसे जो जगहंसाई हो गई।।
@नलिन#उस्ताद

Tuesday, 25 June 2019

175-गजल

शहर में अब तेरे मोम दिल दिखते नहीं हैं।
लोग तो यहां अजमत भरे बसते नहीं हैं।।
बादल भी नक्शे कदम अब तेरे ही बढ रहे। जुल्फों की मानिंद खुल के बरसते नहीं हैं।। कंक्रीट के जंगल जबसे आदम बसने लगा। लबों पर महकते फूल कहीं दिखते नहीं हैं।। मासूम चेहरे वहशी निगाहों से डरे दिख रहे। आंखों में इंद्रधनुष इनके चमकते नहीं हैं।।
टकटकी लगाए आसमां कब तलक देखें। फरिश्ते भी अब तो जमीं पर उतरते नहीं हैं।। कुछ कहें,कुछ सुनें प्यार के पेंच लड़ाते।
मेले दिल की चौपाल अब लगते नहीं हैं।।
अंधेरे रास्ते बरगलाते चेहरे बदल के सदा।
शुक्र"उस्ताद"का कदम ये फिसलते नहीं हैं।।
@नलिन#उस्ताद

Monday, 24 June 2019

174-गजल

दिल तो हमारा
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यूँ दिल तो हमारा ता-उमर भटकता है।
सिर चढ़ाने से पर और भी बिगड़ता है।।
करो अनसुनी अगर तो रोने लगता है।
धीरे-धीरे सही पर फिर ये समझता है।।
क्या है मुश्किल कहो उसके लिए कुछ।
सदा बस में जिसके भी रहा करता है।।
जिद तो इसकी तुम चुपचाप देखा करो।
थक-हार ऑखिर ये भी सुधर जाता है।।
हथेली में चाहे उगा दे कभी भी सरसों।
ख्वाबों को हमारे हकीकत बना देता है।।दिल जो सध जाए तो मुश्किल है क्या।जमाना तो फिर उसका मुरीद होता है।।
सुख,दुःख कहाँ फिर उसे हलकान करें।
बन के"उस्ताद"वो तो बस थिरकता है।।
@नलिन#उस्ताद

Sunday, 23 June 2019

173-गजल

हम तो मयखाना बनकर घूमते हैं।
हर किस्म की मय पास रखते हैं।।
जैसी भी हो तबीयत यार तुम्हारी।
सुधारने का दावा हर हाल करते हैं।।
तबले की गमक,बाँसुरी के पोर पर। उंगलियां हुनर से हम बड़ी फेरते हैं।।
बंदापरवर हमें चाहने का शुक्रिया।
सजदे में तेरे तो हर बार झुकते हैं।।
रंजोगम परेशानी अपनी सभी दे दो।
जख्म"उस्ताद"सब करीने से भरते हैं।।
@नलिन#उस्ताद

Saturday, 22 June 2019

172-गजल

अच्छी सूरत भली लगती है सभी को।
मगर सीरत कहां मिलती है सभी को।।लाचारी दिखाने के तो हैं बहाने हजारों ही। जूझने की कूवत कहां रहती है सभी को।। उँगलियां उठाना तो आसान है दूसरों पर। खुद की गलती कहां दिखती है सभी को।। लंबी चौड़ी बयानबाजी से बचिये हुजूर।
बात छोटी ही पते की भाती है सभी को।।
भटकते रहो चाहे लाख पुरजोर कोशिश करो।
कहाँ"उस्ताद"की सोहबत मिलती है सभी को।।
@नलिन#उस्ताद

Friday, 21 June 2019

171-गजल

धरती का तन-मन खिल गया।
बरखा का प्यार जो मिल गया।।
नजरों की उनकी इनायत देखिए।
दिल का जख्म गहरा सिल गया।।
सौंधी महक से गमक उठा जहां सारा।
तन-मन जो आज हिल-मिल गया।।खुसूसियत*पर बेवजह का दाग।*व्यक्तित्व
गया तो सही पर बमुश्किल गया।।
दोस्त था या था वो रकीब*मेरा।*शत्रु
मुखौटा उतारा तो मैं हिल गया।।
लो सॉवरे का जब से दीदार हुआ।
"उस्ताद"का तो अपना दिल गया।।
@नलिन#उस्ताद

Thursday, 20 June 2019

योग दिवस पर विशेष(कविता)

"अष्टांग योग"(योग दिवस 21जून पर विशेष)
☆☆☆☆¤¤¤¤ॐ¤¤¤¤☆☆☆☆
चित्त वृत्ति निरोध हेतु करते हैं जो हम निरंतर काम।
उस"अष्टांग-योग"के हैं प्रचलित विशिष्ट आठ आयाम।।
यम,नियम,आसन,प्राणायाम,प्रत्याहार हैं पाँच बहिरंग।
वहीं धारणा,ध्यान,समाधि ये योग के तीन अंदरूनी अंग।।
अहिंसा,सत्य,अस्तेय,ब्रह्मचर्य,अपनाकर "अपरिग्रह"*करना।
*अधिक संचय से बचना
पाँच सामाजिक नैतिकता अपनाना यही "यम" का है कहना।।
शौच,संतोष,तप,स्वाध्याय तथा प्रभु पर रखो अटल श्रद्धा।
पांच व्यक्तिगत नैतिकता"नियम"की है यही सहज मर्यादा।।
नियमित"आसन"करते हैं हमारे तन-मन को सदैव निरोग।
"प्राणायाम"वहीं सांसों पर नियंत्रण से दूर करे  मन के रोग।।
"प्रत्याहार"चित्त को इंद्रियों के विचलन से हमें बचा एकाग्र करता।
जिससे हमारा फिर चित्त उत्कृष्ट विचार को"धारणा"से बांध लेता।।
इस उत्कृष्ट विचार की चित्त में सतत एकाग्रता ही"ध्यान"कहलाती।
"समाधि"में फिर निर्विकार या साकार लौ ब्रह्म से जो है जगाती।।
@नलिन#तारकेश

Wednesday, 19 June 2019

170-गजल

जैसे-जैसे हम खुद को जानते हैं।
वैसे-वैसे रब को पहचानते हैं।।
छुपे नहीं रहते हुजूर फिर तो हमसे।
धीरे ही सही सामने आने लगते हैं।।
हां हर घड़ी आईना ले डोलना पड़ता हमें।
जांच उसकी तो तन-मन किया करते हैं।।
दरअसल खुद की जांच से आती है पाकीजगी।
होती है गर्द साफ तो अक्स खालिस उभरते हैं।।
मगर यह कवायद तो ता-उम्र की प्यारे।
चूक हो अगर बड़े-बड़े भंवर डूबते हैं।।
यूँ नचाता है वही कठपुतली सा हमें। खुद को पर भूल से खुदा समझते हैं।।
ये अलग बात रंग में उसके रंगने के बाद। इनायते करम से उस्ताद बन सकते हैं।।
@नलिन#उस्ताद

169-गजल

तेरी हर बात का हम इस कदर ऐतबार करते हैं।
सूरज को भी कहे चाँद तो कहाँ हम जाँचते हैं।।
कोई कहे ना कहे दो लफ्ज़ भी इकराम* में।*सम्मान
हुनर को यहाँ तेरे सभी अच्छे से मानते हैं।।
जलवाफरोज है जो आज वो कल न रहेगा वैसा ही।
नुकता*-ए-वक्त की अदा महज आलिम (ज्ञानी)ही जानते हैं।।*पते की बात
रहा ना तू बन कर मेरा ये हो चाहे मुकद्दर मेरा।
आज भी हम तो मगर तुझे उतना ही चाहते हैं।।
नाम की पोथियाँ जिसकी हर घड़ी बाँच रहे लोग। 
रूहानी थाप पर उसकी हम तो चुपचाप नाचते हैं।।
हवा करे तो करे मुखबरी "उस्ताद" परवाह नहीं हमें।
नूरे-खुदाई उसकी ही इजाजत तो लोगों में बाँटते हैं।।
@नलिन#उस्ताद

Monday, 17 June 2019

168-गजल

बच्चा बन रहा मन जैसे-जैसे बुढ़ापा बढ़ रहा।
मना किया जो चारागर*ने वही खाना बढ़ रहा।।*डाक्टर
दर्द की गठरी उठाए सभी तो चल रहे हैं सफर में।
कौन किस से पूछे गम ये कितना सारा बढ रहा।।
सीधे सच्चे रास्तों पर चलना अब किसे मंजूर भला।
चूसने खून जौंक सा सबमें है उकसावा बढ रहा।।
दलदल में इंसानियत के फड़फड़ा रहे रिश्ते सारे।
तरक्की का ये सिलसिला अजब रोजाना बढ  रहा।।
लगाए न कभी दरख्त तो क्या करें "उस्ताद"हम।
झेलना तो पड़ेगा जो दिन-ब-दिन पारा बढ रहा।
@नलिन#उस्ताद

कविता

बाॅध तमसे आज और खोल छाती के बटन सारे।
चल पड़े देने चुनौतियों को मात मिलके हम सारे।
मुस्तकबिल हमें अपना संवारना अच्छे से आता है।
बुलंदियों को तभी तो चूमने तैयार सभी हम सारे।
खौफ है नहीं जरा भी पहाड़ों और खाईयों का।
पाट देंगे ये फासले मालूम है मिलकर हम सारे।
आफताब*सी रोशनी कारनामों में दिखेगी हमारी।*सूरज
चांद सी नरमी दिलों में लिए बढ़ रहे हम सारे।
लहूलुहान हो रहे तो कम से कम सुकून ये तो है।
नई नस्ल के खातिर बनाने जा रहे नए रास्ते हम सारे।
"उस्ताद"हर दिल में मोहब्बत ही बस एक उमड़े।
यही सोच झंडा उठाए कंधा मिला रहे हम सारे।।
@नलिन#उस्ताद

Saturday, 15 June 2019

Magic of Holi:union of x cube range of human aspect and nature the festival of Holi with a magical leg traction for one and all is Naqv like a water Reserve a full of colour love just chat and enthusiasm in which the regulars with gay abandon it not oneday themselves take care a celebratory DIP but also company needs to join in with an infectious spirit red yellow green blue a wondrous my weight of use engulfs you touching not only your after self but also staying the evil spirit each has a different text to it a different field creating a unique magic and invading the sun since they create a whole new magic and you were giving rise to my mate 9 Dragons in a fascinating wondrous way this festival of colours refuses to accept the small minded approach to common difference in fact through the medium of its variety of colours it it it it appears eager to establishing Universal code of similarity is chewing common perceptions and practices about differences individuals between da parallel important important H1 police thinking if 16 girl online on providing is great too much each and everyone into a common  Universal hunt it its funny experiment and universal Goodwill friendship and affinity who's magic doesn't is there anyone so it's no wonder that this festival of colours has been especially singled out for concern love and even personal participation by the divine painted Lord Krishna himself after all Krishna himself as Krishna that first attraction who can escape the incredible journey of his personality is charming dusky countenance India itself to you at first sight and then begin San Andreas process of rising and falling with the innumerable Les office playful multifaceted personality to railway station fascination about the joys participation in this festival but if quality interest on the fact Discover weather this great divide Channu and created himself to then fall prey to the sounds of animal the answer is yes actually Krishna phones pray to the Charles office Bangalore Radha and Radha is nobody else but the symbol of great nature that's the reason when in Hindu scriptures we find detailed description of figures like wrong Poonam Sathyabama munti calling di and Satya being referred to as Maharani Resort Ramanagara those mentioned comes as a Gopi and his childhood companion the symbolic meaning behind this is that Raza is in check with self its present everywhere Krishna has no separate existence from her so its pointless to talk of her as somebody separate from him this personification of Raza is in fact the result of devotees wholehearted devotional imagination "Atma to Radhika tasya"- you are such a sentiment gets spread among the populace it was like and that the queen is like freak meaning in Sathyabama and exalted titles like Manish in Patna Manushi faded into the background and Radha Rani become the most important and the loved ones of all in this context writing someone has  Radha Tu bad Bhagini Kaun Tapasya ki Naveen Taran Taran Taran Hai Teri Yaad me know when is Radha Oriya the world nature at her attractive best the time naturally is the bus on spring season when she goes in for solar stronger and without Sleeping Beauty and Charm casts an  irresistible spell on her heart stealer Nawal Kishore Krishna and buyers in our her love in Telugu responding to nature's welcoming sign C2 Vasant wasn't well trans dances to its music and travels in its beauty and losers inside his heart beginners today's to Annu rhythm what's new in checking fragrance reacting to the atmosphere how can you keep to himself is not separate from it and growing along the irresistible spirit of Radha which in turn is also this without the inmate rhythm of nature gives away himself to it so tukray and I tell this feeling of transcendence and Samadhi like experience is empty the celebration of a festival that is equally of both men and nature to every 4 of which uses a feeling of devotion and devotion MS everyone as if he wishes to colour himself in the Radha Krishna's printing Mumbai Delhi Jet bhanja using through every port rhythmic sound of groovz emanating from dancing feet is a speaking the language of love is lost in the melody sound of youth and lips engrossed in Radhakrishna job as a turn the entire Cosmos Into  Brij Mandal and why not hear you and have Nidhivan Gokul Nandgram Barsane Wali you and Madhuban this  if in fact the real essence of Holi which in today's environment seems to be somewhere trading but thankfully is still there a poet has at least it's okay Deedar Hi Tu Nazar Paida Kare if you see the judge Singh Ji then acquired the site so Complex Bakery more effort experience this evening colour and vibrancy of this festival called Holi in the end I'd like to share with the readers a unique beautiful experience I had while writing this article which colour will be interpreted as a coincidence but I believe it could be attributed to A sub conscience emanation when one is deeply in merged in particular thought in the reference is to an SMS I received it in treated mean to relieve the combine names of Radha Krishna by making it a little and then it becomes "Rah- De- Krishna". Now if we need to understand the true nature of Holi we would need to chat Radhe Krishna.
@Nalin #Tarkesh

घन घमंड नभ गरजत घोरा

घन घमंड नभ गरजत घोरा
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जेठ की प्रचंड गर्मी से क्या बच्चे क्या बूढे सभी हलकान हो जाते हैं। भारत के मैदानी इलाकों में तो पारा जैसे इस मौसम में सभी हदों को पार करने को बावला रहता है।लू और अंधड़ के थपेड़ों से जनजीवन बेहाल हो त्राहि-माम,त्राहि-माम,करने लगता है।अप्रैल मई-जून
ये तीन माह तो काटने मुश्किल हो जाते हैं। दिन लंबे होते हैं और रातें छोटी तो देर रात जब कुछ मौसम सुहावना होने लगता है तब कहीं बिस्तर में जा पांव पसारने की हुध आती है।लेकिन फिर जल्दी ही सुबह भगवान भास्कर की रश्मियां अपनी दस्तक देने लगती हैं।अगर उनकी बात नहीं मानी गई तो जल्दी ही वो अपनी गर्माहट और उष्णता से हमें बिस्तर छोड़ने पर मजबूर कर देती हैं। हालांकि गर्मी का ताप जब कुछ अधिक ही बढ़ने लगता है और वह जीवों के लिए असहनीय हो जाता है तो प्रकृति अपनी ममता,उदारता के वशीभूत द्रवित हो जाती है। उसकी करुना सूरज की किरणों द्वारा अवशोषित हो मेघों में  छिपाई गई अकूत जल राशि को पिघला देती है और लो पृथ्वी के आंचल को भिगो देने के लिए वर्षा की बूंदों की झड़ी झरझराने लग जाती है।पवन जो कल तक तप्त और मारक लगती थी आज वो शीतल,मृदुल थपकी देती है। आकाश में उमड़-घुमड़ गरजते बादलों का स्वर मानो जैसे मृदंग और पखावज जैसे वाद्यों का मुकाबला करने लगता है और लगे हाथ इसी बहाने पृथ्वीवासियों का बरखा ऋतु के आगमन पर खैरमकदम करता प्रतीत होता है। दादुर,मोर,पपीहा जैसे जीव तो वर्षा ऋतु के आगमन से विशेष प्रसन्न होते ही हैं अन्य पशु-पक्षी,जीव-जंतु भी राहत की सांस लेते हैं। अब ऐसे में मनुष्य के उल्लास की तो बात ही क्या कहीं जाए।उसने  ही तो इंद्रदेव से मनुहार की थी।हजारों मन्नतें मांगी थी कि काले मेघा पानी दे और यह तपन यह  गरमी की भीषणता कुछ कम हो। तो अब जब सावन-भादो बरसने लगे तो वह तो उस फुहार में अपने तन-मन को भिगो देने को आतुर देखेगा ही दिखेगा। सावन के झूले में बैठ मदमस्त हवा के पंखों में उड़ान भर बादलों के कानों में कुछ रसीली मृदुल शरारत भरी कानाफूसी जरूर करना चाहेगा। फिल्मी दुनिया में तो वर्षा ऋतु को हाथों हाथ लिया जाता है। बिना बरखा की झड़ी लगाए फिल्म की पटकथा बंजर भूमि के सदृश लगती है। निर्देशक,निर्माता,लेखक,दर्शक सभी बिना वर्षा के कुम्हला जाते हैं।खासतौर से जब फिल्म पटकथा रोमांस को दर्शाना चाहती हो। यूं बात मुफलिसी की हो दुःख की हो या घटना को नाटकीय मोड़ देने की हर जगह दक्ष निर्देशक के लिए बरसात एक नया आईडिया लेकर आती है। तभी तो बारिश पर आधारित गीतों की लोकप्रियता का ग्राफ कुछ ज्यादा ही ऊपर है। "बरसात में तुमसे मिले हम सजन तुमसे मिले हम", "सावन के झूले पड़े हैं तुम चले आओ","गरजत बरसत सावन आयो रे", "आज मौसम बड़ा बेईमान है","जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात", "डम डम डिगा डिगा","घनन घनन घन घिर आए बदरा" जैसे ढेरों कणॆप्रिय गाने अपनी तान से सभी को मोहित कर देते हैं और दर्शकों की आंखों में भी जाने कितनी सपनों की बरसात कभी मंद तो कभी गरज-गरज कर बरसने लगती है।
तीक्ष्ण गरमी से अकुलाई पृथ्वी को तो वर्षा की बूंदे अमृत समान लगती हैं जो उसकी मां प्रकृति अपने स्नेह आंचल से उस पर बरसाती है।नदियों, तालाब, पोखरों,कुओं में एक नई रवानगी,एक नई उल्लासित थिरकन पैदा हो जाती है। पेड़-पौधे जो शुष्क हो औंधे पड़े दिखते थे वह भी वर्षा की संजीवनी से चेतन हो लहलहाने लगते हैं। पात-पात कोमल और चिकने हो बाल शिशु सी मुस्कान बिखेरने लगते हैं। पूरी धरती हरी-भरी हो जाती है। तभी तो यह कहावत बनी कि "सावन के अंधे को हरा-हरा ही सूझता है"।पशुओं को खाने पीने की प्रचुर मात्रा मिलती है तो वह भी हष्ट पुष्ट हो सुडौल हो जाते हैं ।अब जब पृथ्वी इस  रितु को देख प्रसन्न हो अपना अन्नपूर्णा स्वरूप प्रदर्शित करती है तो मानव को अपना भविष्य भी उज्जवल दिखता है क्योंकि वह आश्वस्त हो जाता है कि अच्छी वर्षा खाद्यान्न की कमी नहीं होने देगी। वैसे भी भारत जैसे कृषि प्रधान देश में वर्षा ऋतु का सही समय पर आना और यथोचित होना किसी वरदान से कम नहीं है।यह जन-जन की समृद्धि का प्रतीक है। यह सामान्य कृषक मजदूर से लेकर बड़े बड़े उद्योगपति, नेता,अधिकारी तक के चेहरे पर उल्लास की मोहर लगाने की सामर्थ्य रखती है। तभी तो सभी अपने-अपने ढंग से इस रितु का लुत्फ उठाने को तत्पर दिखते हैं। कहीं गरमा-गरम समोसा,पकौड़ी, कॉफी,चाय की चुस्कियों के साथ,दोस्तों की गपशप का सिलसिला कहीं झूले की पेंग बढ़ा आकाश को बाहों में भरने की कोशिश तो किसी का लॉन्ग ड्राइव पर निकलना एक अलग ही माहौल बनाता है। कुछ भीगते हुए छतरियों में संभल-संभल कर चलना या कि छत या आंगन में तेज बौछारों में नाचने लगना इन सबका ही तो मस्त नजारा पेश करता है, वर्षा ऋतु का आगमन।और जब क्योंकि वर्षा की फुहारों का मौसम आने ही वाला है तो आइए अभी से समां बांधने के लिए कमर कस लें और थिरकने के लिए तैयार रहें। मौसम और दस्तूर दोनों ही गलबहियां डाले आपका इंतजार कर रहे हैं।
@नलिन #तारकेश

167-गजल

यूं चला तो जाता हूं चारागर के पास अक्सर
दर्दे जिक्र मगर भूल जाता हूं खास अक्सर।। ढूंढता हूं जब किसी को भी बड़ी शिद्दत से। मिल जाता है वो मुझे अपने पास अक्सर।। हम क्या थे और क्या हो गए सोचो तो जरा। भुला दिया पर खुद हमने इतिहास अक्सर।।
जमींनी हकीकत से जो कोसों दूर भटके।
रहता है यार उन्हें ही रोग छपास अक्सर।।
झन्डाबरदार जो हर गली सेक्यूलर मोर्चे के आजकल।
करते हैं वही आलिम मक्कारी की बकवास अक्सर।।
गढ़ रहे इबारतें गजब हौंसलों की दिव्यांग हर दिन।
जिनका उड़ाते रहे थे हम"उस्ताद"उपहास अक्सर।।
@नलिन#उस्ताद

Friday, 14 June 2019

166-गजल

धत् तेरी की,धत् तेरी की,धत् तेरे की।
एक दूजे की चाहें,सब ही,धत् तेरे की।।
बड़े जुगाड़ टिकट चुनाव मिला था हमको।
मगर है निकली किस्मत फूटी,धत् तेरे की।।
जिस-जिस को भी हमने सोचा,बने हमारी।
निकली बेवफा सारी की सारी,धत् तेरे की।।
पप्पू को पीएम पद की उम्मीद बड़ी थी।
पर मिली हार उसे करारी,धत् तेरे की।।
लो चौकीदार हुए जब सभी आम जन।
चोरों की सारी पोल खुली,धत् तेरे की।।
जल्दी-बाजी के चक्कर में अक्सर।
चौराहों पर है चोट लगी,धत् तेरे की।।
पाले पाक आतंकी जो घर-घर अपने।
थू-थू होती खुद की उसकी,धत् तेरे की।।
शागिदॆ अब बेशर्मी से खुल के कहता।
बहुत सुनी उस्ताद तुम्हारी,धत्त तेरे की।।
@Nalin#Ustaad

Thursday, 13 June 2019

165-गजल

रिश्तों के ये दरख्त फलते-फूलते नहीं अब।
मिलते हैं लोग मगर घुलते-मिलते नहीं अब।
सब हैं अपने में ही गुमशुदा से रहते।
दीवारें फसलों की तोड़ते नहीं अब।।
पाला-पोसा औ हर घड़ी कलेजे से लगाया।
बच्चे कदर उन मां बाप की करते नहीं अब।।
जिस्म को संवारने में इस कदर मशरूफ हैं सब।
रूहे पाक भी है कोई शय पहचानते नहीं अब।।
बहुत कुछ दिया है परवरदिगार ने हमें।
दुआ छोड़,तलाबेली* से बचते नहीं अब।।*लालसा
बूढे बुजुगॆ से देते थे घना आसरा जो दरख्त।
शहर तो छोड़ो ये गाॅव में भी दिखते नहीं अब।।
सच्चे शागिर्द में होता है छुपा आलिम* उस्ताद।*ज्ञानी
आसां सी बात मगर लोग समझते नहीं अब।।
@nalin#ustaad

Wednesday, 12 June 2019

164-गजल

प्यारा बड़ा तू तो है सजन मेरा।
संवारता हर घड़ी ये जीवन मेरा।।
महज आने की आहट सुनके तेरी।
महक उठता है सारा गुलशन मेरा।।
घुली पाजेब की रुन-झुन हवा में।
करने लगा है दिल छन-छन मेरा।।
उमड़ने-घुमड़ने लगे हैं जो काले बादल।
रूहे तपन मिटाने आया साजन मेरा।।
जमाने के बहकावे में आओ न उस्ताद तुम।
वायदा-ए-कोताही करता नहीं मोहन मेरा।।

Monday, 10 June 2019

163-गजल

तपता चाबुक ले अंधाधुंध वार कर रही। कातिलाना धूप तो जीना दुश्वार कर रही।
दरख़्तों के होंठ वहशी बन सिल दिए हैं।
सड़क में आवाजाही चीत्कार कर रही।।
पौधे,परिंदे,आदम सब के हलक खुश्क हैं। ग्लोबल वार्मिंग रोज जो फूत्कार कर रही।
पानी,हवा,आसमां,धरती सब लुटे-पिटे से। हमें बचाओ ये कायनात पुकार कर रही।।  जरा-जरा सी बात पर सिर फुट्टअव्वल की नौबत।
गरमी मिजाजे तल्खी का इजाफा बेशुमार कर रही।।
संगमरमर से अपने गुलिस्ताए ताज तो सजा लिए।
मौजे आरामतलबी दिक्कतें अब हजार कर रही।।
उस्ताद हवस की आग ये हमने ही लगाई है। अंधी योजनाएं बस धी की बौछार कर रही।।

Sunday, 9 June 2019

162-गजल


रिश्तों में आजकल बात ये नई खास है।
नहीं किसी को किसी पर जरा विश्वास है।। जंगलों में कंक्रीट के नजरबंद है जिंदगी। कहता मगर हाकिम इसको ही विकास है।।फैशन ज़माने के अजब सिरफिरे देखिए। बेशकीमती बिकता फटा ब्रांडेड लिबास है।। खुसूसी-उमराव*अजाब** का राग अलाप रहे।*प्रसिद्ध व्यक्ति**दुर्भाग्य
मजलूम*वहीं दो जून की रोटी पर खलास है।।*पीड़ित
भरा सीने जो गुबार दुनियावी ज्यादती का। "उस्ताद"बस निकालता उसकी भड़ास है।।

161-गजल

आसमां मुट्ठी में उसने सारा कर लिया।
रचा इतिहास कारनामा न्यारा कर लिया।। कानी अंगुली पर्वत सी पीर उठा ली।
जीने का गजब यूं सहारा कर लिया।।
लाचार मां-बाप अपने भारी लगने लगे तो।
भाइयों ने जड़ों का ही बंटवारा कर लिया।। मुफलिसी का जहर उसने हर घूंट पिया।
उफ न कर हंसते हुए गुजारा कर लिया।।  हकीकत से रूबरू खुदा ने किया जब।
दुनिया से उस्ताद ने किनारा कर लिया।।

160-गजल

दिल से अपने रोज बतियाता हूं मैं।
तभी तो इतना खिलखिलाता हूं मैं।।
लोग तो कहने लगे हैं अब पागल मुझे।
मगर फिर भी हर हाल गुनगुनाता हूं मैं।।
कोई करे या न करे हौंसला आफजाई।
अपनी रोशनी से खुद जगमगाता हूं मैं।।
तंज करके करती है परेशां दुनिया।
रूठे दिल को खुद ही मनाता हूं मैं।।
देखता नहीं किसी को शक की निगाह से।
खुद से जो हर रोज ऑख मिलाता हूं मैं।।किसी के कहने से बहकता नहीं।
अपना तो उस्ताद विधाता हूं मैं।।

Friday, 7 June 2019

159-गजल

सामने मेरी जो तारीफ करते हैं।
पीठ पीछे वो सदा वार करते हैं।।
मत सताना किसी गरीब को तुम।
आह में अपनी वो असर रखते हैं।।
हकीकत में तब्दील हुए सपने उनके ही। हारकर भी जो नहीं कभी हार मानते हैं।।
दिया है हुनर खुदा ने यहां सब को ही।
जाने क्यों दूसरों से हम रश्क करते हैं।।
प्यार हो तो बताने की जरूरत नहीं।
दिल हमारे खुद-ब-खुद धड़कते हैं।।
जाति,मजहब देख होता इंसाफ अब।
शहरे काजी यहां सब अंधे बसते हैं।।
होंठ सीकर देखते खून,बलात्कार।
आलिम* यहां मौकापरस्त रहते हैं।।*ज्ञानी
याद रखती है आवाम तारीखें।
डायरी कहां फकीर लिखते हैं।।
"उस्ताद"करेंगे याद वही तुमको।
आज जो तुम पर तंज कसते हैं।।
@नलिन#उस्ताद

Thursday, 6 June 2019

158-गजल

कहना हर बात सलीके से ये भी एक हुनर है।
वरना कहो होता कहां सबका ऐसा जिगर है।।
जमाने के पेंचोखम से बच साफ निकल जाना।
खुदा कसम बड़ी मुश्किल यहां की हर डगर है।।
भरा है जो लबालब रूहानी इल्म से गले तक।
भला कहो कहां उसे जमाने की फिकर है।।
छाप छोड़ दी दिले दहलीज उसने आज मेरी।
सज-संवर जब वो रचा गया पांव महावर है।।
घुंघरू सी बज के जब महकती है हंसी उसकी।
दिले धड़कन फिर करती जुगलबंदी झर झर है।।
तराशनी होती है सिफत*अपनी रियाज के जरिए।*गुण
कहे हर निगाह यूं ही नहीं उस्ताद कद्दावर है।।

Wednesday, 5 June 2019

157-गजल

कुछ भी हो कम से कम यह सुकूं तो रहता है।
जमीं से जुड़ा आदमी नहीं आसमां से गिरता है।।
कहो कौन यहां भला किसको सुधार सकता है।
दुनियावी काई पर जब हर कोई  फिसलता है।।
थपथपाने में पीठ कंजूसी बरतते हैं बेवजह लोग।
जबकि इससे तो हरेक का हौसला ही बढ़ता है।।
उसकी उधारी चढ़ी है मुझ पर ना मेरी उस पर।
जाने भला क्यों हर शख्स संगदिल ही मिलता है।।
लिखे बहुत ही गहरा मगर बड़ी सादी जुबान में।
शाइर समझदार ख्याल उसका बड़ा रखता है।।
सियासत इस क़दर घुस गई है घरों में हमारे।
अब तो बेटा भी सवाल पर सवाल दागता है। मसले अलगाव के भाइयों के उबलने लगे।
लो अब खूं भी भाप बन पानी सा उड़ता है।।
गालिब,मीर,जौंक होंगे और भी कई बड़े नामचीं शाइर।
सुखनवर"उस्ताद"तो रब से इमला लिया करता है।।

156-गजल

फूट रहे हैं सूखे दरख्त में प्यार के कल्ले मेरे। सुना जबसे बहार बन तू आ रहा बंगले मेरे।
सजदे को झुकना तो चाहूं पर झुकूं कैसे।
लगता उम्र हो गई इंतजार की सांवले मेरे।।
नूरे खुदा क्या यूं ही उधार मिलता है कहो तो जला हूॅ दिन-रात तब हैं कहीं लब खिले मेरे।
तस्सवुर मैं तू मेरे हर वक्त बना रहे बस इतना कर।
रूबरू हो सकूं तुझसे,कहां मुमकिन फैसले  मेरे।।
लो रमजान का मुकद्दस माह भी बीत गया हर बार सा।
ए अमन के चांद बता असल चमकेगा कब कबीले मेरे।।
नदी,परिंदे,दरख्त सभी तो हैरां,परेशां हैं कायनात के।
या खुदा तरक्की की ये कैसी कहानी गढते अगले मेरे।।
दर पर तेरे आने का इरादा छोड़ दिया "उस्ताद"अब तो।
मौजूद हर जगह तो करा दीदार जो नसीब बदले मेरे।।

Monday, 3 June 2019

जय हनुमान

का चुप साधि रहा बलवाना
☆☆☆☆ॐ☆ॐ☆ॐ☆☆☆☆☆
आओ आत्मीय तोड़ दो कारा अब अपनी।
क्षुद्र,संकुल,कल्मष,दृष्टिदोष की अब सारी।
बैठ शांत,गहन आत्ममंथन करो पुनः पुनः।
और विचारो क्या है सत्य पहचान तुम्हारी।
क्यों विचरते हो,झूठी खाल ओढ प्रपंचकारी।
तुम नहीं हो कतई भी,मिमयाते डरते मेमने।
तुम तो हो मृगेन्द्र शावक,पराक्रमी अलबेले।
सो जरा तनिक ठिठक,पहचान लो खुद को।
देख अपना स्वरूप निर्मल आत्मसरोवर में।
और फिर लंबी गर्जना भर आश्वस्त कर लो।
अपने अस्तित्व की इस ओजमयी प्रकृति को।
कनक भूधराकार देह अब अपनी फुला कर।
पवनतनय सदृश पेंग भरो बड़े मुक्त भाव से।
अनन्त नीला आकाश देखो बुलाता प्यार से।
तुमने ही तो करना है राम काज छूटा अधूरा।
अवतरण भी तो तभी हुआ है जग में न्यारा।
अतः कहो कौन सो काज कठिन जग माहीं।
जो है असंभव और नहि होइ तात तुम पाहीं।
@नलिन#तारकेश

Sunday, 2 June 2019

155-गजल

कड़ी धूप जब अपना साथ साया नहीं देता।
वो तो महज दोस्त जो ठिकाना नहीं देता।।
तन्हाई रात की कैसी बिताई क्या बताएं। पूनम का चांद भी जब उजाला नहीं देता।। जिगरी यार की खूबसूरत एक पहचान है। बेबाक,बेलौस कहे मगर ताना नहीं देता।। मुस्तकबिल में होगा जितना उतना ही मिलेगा।
वो राई-रत्ती कभी कम या ज्यादा नहीं देता।।
प्यार  हो जाए जब कभी जुनून की हद तक। गैर को अपनी दीवानगी दीवाना नहीं देता।। बेफिक्री का आलम उस्ताद की तुम मत पूछो।
खुद को वो कभी भाव का एक आना नहीं देता।।

Saturday, 1 June 2019

154-गजल

तू जो कुछ भी करे दिलो दिमाग से।
करूंगा मैं भी बच के हमेशा राग से।।
सोच तेरी-मेरी,सब की एक सी रहे।
मिल-जुल बढें आ हम सब भाग*से।*भाग्य
ए खुदा नूर ए इलाही तू जमाने भर का।
बचा के ले चल हमें अब गुनाहे दाग से।।
कहे तू जो मेरी शरण आएगा सब छोड़ के।करूंगा साफ यकीनन गुनाह की पाग से।।
बदनियति से बचा रखना हमें तू खुदावंद।
इकठ्ठे कमाएं उस्ताद सवाब बड़े भाग से।।