Wednesday, 26 December 2018

गजल-65 झूठ बोलने का

झूठ बोलने का सलीका भी आना चाहिए।
गैर ना सही कभी खुद को बहलाना चाहिए।।

तुम रहो खलवत*या जलवत**जिस किसी हाल में।*तन्हाई में **भीड़ में
इनायत को जरा ना रब की भुलाना चाहिए।।

चंदन रगड़ से ज्यादा शोला बन जाएगा। बेसहारा,तंगदस्त* को ना सताना चाहिए।।*अभावग्रस्त

यहां आगे तो कोई जरा पीछे जाने वाला।
दुनियावी सदॆ रिश्तों को तो बस मिटाना चाहिए।।

काफी मुश्किल होते हैं हालात "उस्ताद" कभी।
फौलाद बन के मगर बेखौफ टकराना चाहिए।।

गजल-63 तुम्हारा जब भी कभी

तुम्हारा जब भी कभी नाम लिया हमने।
खुद पर ही बड़ा एक अहसान किया हमने।।                                                          

हाल दिल का लिख तो दिया तुझे हमने।
ख़्वाब कुछ तो नया सजा लिया हमने।।

ले हाथों की सब लकीरों को मिटा चुके हम।
बता क्या ना किया तेरे लिए छलिया हमने।।

मिटाने को दूरियां सोच लेकर जब हम बढे।
महज मुहब्बतों का वास्ता तब दिया हमने।।

बना कर तुझको अपना हमकदम देख यारब।
अंगूठा दिखाया नसीब को बढिया हमने।।

सिले लबों को खोल कर "उस्ताद" आज।
बहा दिया मुहब्बत का दरिया हमने।।

गजल-64 भले दिखती है छोटी

भले दिखती है छोटी हमें ये जितनी जिंदगी।
दरअसल है ये मगर लाफानी* उतनी जिंदगी।।*अन्तहीन

पांच अनासिर* से है देखो ये बनी जिंदगी।*तत्व
खुदा के नूर से है सारी ये सनी ज़िंदगी।।

धागे में जैसे मोती के दाने पिरोये हों।
बहुत खूबसूरत है ये प्यारी अपनी जिंदगी।।

अलहदा*है बड़ी इसकी सिफत क्या कुछ बयां करिए।*विशिष्ट
मातम और मौजे-रौनक की है चाशनी जिंदगी।

होशियारी से तौबा"उस्ताद"अब तुम भी कर लो।
बड़े-बड़ों को पिलाती है पानी ठगनी जिंदगी।।

Tuesday, 25 December 2018

गजल-62 फूलों सा खिलकर

फूलों सा खिल कर जो बस खुशबू सा बिखर जाए।
मिलेंगे चाहने वाले चाहे वह जिधर जाए।।

सफर में होंगी तो तकलीफें चाहे कुछ भी करो।
पकड़ राह तू फिर चाहे इधर जाए या उधर जाए।।

चलो इस कदर खूबसूरती से जिंदगी के सफर में ।
पांव के निशान पर तेरे किसी की ना नजर  जाए।।

दुनिया है ये उसकी कटे पंख जो हौंसले भरे।
नहीं उसके लिए जो हर कदम पर ठिठक कर डर जाए।।

ना उधो से लेना और ना माधो का देना।
जनाब फिर भला कहो "उस्ताद" किसके घर जाए।।

Saturday, 22 December 2018

गजल-59 पोपला मुंह

पोपला मुंह चबाने को सब मचलने लगा।
अब बुड्ढा भी बच्चों से बढ़ थिरकने लगा।।

जुल्फों की तारीफ में पढता है कसीदे।
आए एक बाल खाने में तो उखड़ने लगा।।

दुनिया को देता है सीख बैराग की।
देखी कहीं नाज़नीन तो मचलने लगा।।

चलता हो पकड़ कर वो चाहे लाठी।
सफेद बालों में डाई रचने लगा।।

हिंदी से छत्तीस का आंकड़ा बना लिया।
नैन-मटक्का अंग्रेजी से करने लगा।

जंगल में आये हैं जब से अच्छे दिन।
मीटू से अब तो हर शेर डरने लगा।।

"उस्ताद"का हाल,हाथ कंगन क्या देखो।
चेलों से गुर उस्तादी के सीखने लगा।।

Friday, 21 December 2018

गजल-58 प्यार बाहों में

प्यार बाहों में जकड़ने से नहीं आता।
बस सांसो में सांस भरने से नहीं आता।।

प्यार तो है बड़ी अलहदा सी शय।
यह इजहार करने से नहीं आता।।

दूर रहकर भी बरकरार रहता है प्यार।
यूं नजदीक पर कभी सटने से नहीं आता।।

आसमान की तरह खुला होता है यह तो।
कुएं के मेंढक सा उछलने से नहीं आता।।

समंदर की तरह शांत,गंभीर है यह।
मगर झरने सा मचलने से नहीं आता।।

"उस्ताद"डूबा है जिस राम के प्यार में।
वो ठौर और की पकड़ने से नहीं आता।।

गजल-57 रूह में उसे जो

रूह में उसे जो शामिल किया।
जिस्म कहां फिर दाखिल किया।।

दूर रहकर भी शिद्दत से चाहा।
यादों को उसकी ही मंजिल किया।।

हमें पता था कब प्यार का ककहरा।
उसने ही इसमें आलिम-फाजिल* किया।।
*विद्वान
ख्वाबे हकीकत एड़ी-चोटी लगा दी।
कौन कहता है प्यार ने काहिल किया।।

लगा दिया रोग अजब कैसा ये हमको।
खास सूची जो अपनी शामिल किया।।

बना जो "उस्ताद" नजरे नूर सबका।
इनायत खुदा की जो इस काबिल किया।।

Wednesday, 19 December 2018

गजल-56 हमें तो पीना

हमें तो पीना मंजूर चुपचाप जहर है।
बहस बेवजह करना लोगों से दूभर है।।

हंसते हुए आंसू,रोने में हंसी आने लगी।
कहो पागलपन है कि यह तवाजुन* भरपूर है।।*संतुलन

अश्क भी हमारे हजारों रंग समेटे हुए।
खीझ,प्यार,गुबार दिखे जिनमें बराबर है।।

कहो किसे हम चाहें किससे यहां नफरत करें।
निभाने का किरदार यह तो बस एक अवसर है।।

आने से है मौज* उठी या मौज* से वह आया।*आनन्द
छोड़ो कैसे या क्यों मिल गया रब ये सबर है।।

वो जब यक़ीन मुझ पर ही कतई नहीं करता।
"उस्ताद"-ए-इल्म की कहो उसे क्या कदर है।।

@नलिन #उस्ताद

Tuesday, 18 December 2018

गजल-55 फूलों की बात

फूलों की बात करते हो और कांटों से बचते हो।
यार तुम भी जाने क्यों असल जिंदगी से डरते हो।।

अपने छालों की शिकायत तुम बेवजह करते हो।
दिली आशना की उससे जो अगर बात रटते हो।।

वो ना मिला तो क्या जिंदगी दोजख* बनाओगे।*नरक
आगे बढ़ क्यों नहीं पत्थर मील के गाड़ते हो।।

बहुत सफाई से नापाक*खून से रंगे हाथ।*अपवित्र
दस्ताने उतार मेहंदी रचे हाथ कहते हो।।

हकीकत तो क्या ख्वाब में भी अब नहीं दिखते।
रिश्ते बेफजूल भला क्यों ऐसे जोड़ते हो।।

इस कदर उसके तसव्वुर* में दिन-रात रहने लगे।*कल्पना
आईना देख"उस्ताद"खुद के सजदे करते हो।।

गजल-54 जानता हूं जो लिखा

जानता हूं जो लिखा वो रेत पर लिखा।
सच है मगर जो लिखा उसकी नजर लिखा।।

हवाओं ने मुखबरी की मेरे इश्क की।
वरना तो एहतियातन सब छुपा कर लिखा।।

जुगनू भी खूब काम आया घुप अंधेरे में। किसने उसे पर कहो उजालों का चारागर* लिखा।।*डाक्टर

ता उमर जो अना* की खातिर अपनी जूझती रही।*स्वाभिमान
खुदा जाने क्यों सबने उसे अबला कातर लिखा।।

जर्रे-जर्रे में जब है उसकी  ही तस्वीर ।
वैसे तो भला फिर कहो क्या कुछ इतर लिखा।।

कायनात को सारी सजा दिया महज तसव्वुर* से।*कल्पना
"उस्ताद"उसे तभी तो दिल अजीज बाजीगर
लिखा।।

Sunday, 16 December 2018

गजल-53 दिल नहीं अपना ये तो

दिल नहीं अपना ये तो एक गहरा सागर है। बेशुमार जिसमें हीरा,मोती,जवाहर है।।

आओ हम डूब कर इसमें देखें तो सही।
वरना तो इसने हाथ से जाना बिखर है।।

सांसें भी कब रही है मोहताज किसी की। आज हैं तो जी ले काहे कोई कसर है।।

कहने को यहां कोई किसी का रकीब* नहीं।
*शत्रु
पीठ पर मगर सबके दिखता घाव खंजर है।।

होंगी दुनिया में एक से एक नायाब शै*।*वस्तु/चीजें
हमें तो हर हाल प्यारा अपना घर है।।

दुनिया एक तमाशा जादू भरा लगता।
हर बड़ा "उस्ताद" भी जहां बेअसर है।।

Thursday, 13 December 2018

गजल-50 हवाओं के नाम

हवाओं के नाम लिख दी है मैंने वसीयत अपनी।
इठला के नसीब पर महकती तभी तो फकत अपनी।।

फूल,दरख्त,जमीं,आसमां कुल जमा यानी कायनात के।
मिजाज हैं बड़े अलहदा जो देखी मुझमें तबीयत अपनी।।

हर किसी को यूं तो बख्शी परवरदिगार ने अजीम शख्सियत।
बहुत कम हैं वो लोग जो जानते हैं नायाब कीमत अपनी ।।

लाख लगाए मुखौटे या करे वो गजब की अदाकारी।
दरअसल जानता तो है भीतर से सब हकीकत अपनी।।

चाहे कसमें खा लें कितनी भी रंजोगम साथ निभाने की।
मानो या ना मानो काम तो आती है बस इबादत अपनी।।

वही रंग,वही शोखी फकीराना बहती अल्हड़ सी मस्ती।
"उस्ताद"अब तो पक गई उमर कहां बदलेगी आदत अपनी।।

Wednesday, 12 December 2018

श्रीराम-जानकी विवाह

श्रीराम-जानकी विवाह की बधाई।

श्री राम-जानकी विवाह की मंगल घड़ी पुनः आ गई।
चराचर समस्त जगत अह्लाद भरी रिद्धि- सिद्धि छा गई ।।

तिथि पंचमी,मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की देखो जब पंचांग आ गई।
दसों दिशा बधाई हो बधाई,ध्वनि पुनीत गगन-मंडल ये छा गई।।

श्री राम की भक्ति-शक्ति स्वरूपा मां जानकी वामांग जब आ गई।
भक्त उर,साकेत-धाम बन,नवनिधि जैसे हर ओर छा गई।।

मन-मयूर अधॆ-वर्तुल खोल पंख झूमे जैसे पावस ऋतु ही आ गई।
"नलिन"भाव-विह्वल,कंठ गदगद, रसभरी केकी-ध्वनि छा गई।।

@नलिन #तारकेश

Tuesday, 11 December 2018

गजल-49 जब से आया हूं तेरे शहर से

जब से आया हूं तेरे शहर से।
नशा तारी* है तेरी मेहर** से।।
*समाधि सी अवस्था **दया

तितलियों सी यादें मंडरा रहीं।
मिटती नहीं अब अपने पैकर* से।।
*जिस्म

ख्वाब था या हकीकत क्या कहूं।
कुछ था मिला जो मुझे मुकद्दर से।।

दिल में एक अजब मौज,सुकूं नेमत भरी है।
जिल्लत,अवसाद,रंज अब सभी छूमंतर से।।

जाने पहचाने रास्ते कहां थे "उस्ताद" के।
खुलते रहे मगर पतॆ दर पतॆ सफर से।।

@नलिन #उस्ताद

Sunday, 9 December 2018

गजल-47 याद मेरी किसी को ना

याद मेरी किसी को ना सताया करे ।
आए तो बस खुदा का जिक्र आया करे।।

हम तो सभी हैं उसी खुदावंद की औलादें। माया मगर अपनी इस पहचान को भुलाया करे।।

आईना जो देखूं तो तुम ही दिखो मुझे। मोहब्बत का यही सुरूर बस छाया करे।।

हमारे बीच दरअसल फासला है ही कहां।
दिल से दिल जो एक दूजे का मिल जाया करे।।

लगती हैं "उस्ताद" बातें तुम्हारी अटपटी।
पर चलो एक बार इन्हें अमल तो लाया करें।।

Saturday, 8 December 2018

गजल-46 दिख गए चेहरे तो

दिख गए चेहरे तो दुआ-सलाम हो गई।
वरना तो कहां बातचीत आम हो गई।।

कनखियों से देख मसौदा बात का समझ लेना।
बीते जमाने की बात अब तो हराम हो गई।।

रंग हमारी नई पीढ़ी के अजब-गजब हैं देखिए।
दूध के दांत टूटे नहीं मुहब्बत तमाम हो गई।।

हर कोई अपने ही गुरूर में खुदा बन रहा। इज्जत यूं सबकी तार-तार नीलाम हो गई।।

किस से कहें "उस्ताद"दिल का हाल मुश्किल बड़ी।
सांसे भी हर शख्स की जब से गुलाम हो गई।।

Friday, 7 December 2018

गजल-45 हर रोज दिले-आईने में

हर रोज दिले-आईने में खुद को देखता है।
यूं ही तो नहीं हुजूर वो हर वक्त महकता है।।

सुरूर रग-रग में जब उसका गहरे उतरता है।
खुदाई-रजा* वो सदा इत्तेफाक** बरतता है।।
*ईश्वरीय विधान   **अनुरूपता

अहम को मिटा दे या फैला दे कायनात तक।
आदमियत को तभी आदमी असल समझता है।।

राजे-अबद* बहुत आसां है निभाना उसके लिए।*अमरता
मसावात*,खुलूस**,ईमां को जो साथ रखता है।। *समानता **प्रेम

इब्तिदा है ना ही इंतिहा है उसके बेशुमार जलवों की।
बमुश्किल उसे कोई नियामत* से उसकी जानता है।।*कृपा

कठपुतली की तरह नचाता है वो हम सभी  को।
यूं ही नहीं उसे हर कोई "उस्ताद" कहता है।।

Wednesday, 5 December 2018

गजल -2

ना तुम,ना दिल की वो धड़कन ही काम आई।
लो आज फिर तन्हाई की वही शाम आई।।

सोचा था देखेंगें ख़्वाबों में तस्वीर तुम्हारी। 
हकीकत में कहां मगर नींद बिछुड़ कर एक गाम आई।।         

सुना तो था हमने हिना है एक दिन रंग लाती।
खोटे नसीब पर कहाँ जरा कहो लगाम आई।।

हर दिन,हरेक रात बड़ी मुश्किल से कटी कसम से।
ना जाने क्यों भला हमें ना मौत तमाम आई।।

उनकी बेरुखी भला अब कहाँ है किसी से छुपी।
"उस्ताद" फिर भी मगर उन्हें ना आराम आई।। 

Tuesday, 4 December 2018

राधा ने प्रीत की

राधा ने प्रीत की सुधा-रस सौगात जो कृष्ण को सौंप दी।
अधर-धर,वंशी-धुन,कृष्ण ने वह सहज विश्व को सौंप दी।।

प्रीत की अपरिमित,अकूत बौछार से सृष्टि ओर-पोर जब भीग गई।
प्रकृति-पुरुष की परमानंद प्रीत से पोर-पोर वह तो फिर भीग गई।।

समस्त जड़-चेतन जगत की भाव-दशा,चेतन- जड़ में परिवर्तित हो गई।
अकल्पनीय,अकथनीय,असमंजस भरी मनो- दशा सबकी अजब हो गई।।

ठगे-बौराए सभी, कुछ बुझते कुछ अनबूझे से रास-रंग आकंठ डूब गए।
पहचाने कौन-किसे,जड़-चेतन सभी समवेत राधा-कृष्ण स्वरूप डूब गए।।

देखो अलख जग गई प्रीत की,ऐसी मदहोशी सर्वत्र सृष्टि में छा गई।
राधा-कृष्ण,कृष्ण-राधा नाद-ध्वनि गूंज-गूंज कण-कण में छा गई।।

भावावेश रस-ताल भरी लास्य-गति प्रतिक्षण ही जब बहने लगी।
उमंग,उल्लास,उध्वॆ-प्रीत,उत्प्लावन-मति "नलिन"बहने लगी।।

Monday, 26 November 2018

गीत :संभल कर बोलने पर भी

संभलकर बोलने पर भी कभी,शब्द बिखर जाते हैं।
अर्थ का बड़ा अनर्थ कर,राग-द्वेष जगा जाते हैं।।

प्रीत हो यदि गहरी किसी से भी किसी जन की।
दूर रहते भी सतत मन के तार जुड़ जाते हैं।।

हो हौंसला मंजिल को अपनी पाने का उमंग भरा।
सतरंगी सपनों को हकीकत के पंख लग जाते हैं।।

सुधा रस भरे नेह के आखर जब निकलें हमारे मुख से।
कठोर से कठोर हृदय भी देखो क्षण में पिघल जाते हैं ।।

पुचकार कर कंधे पर हाथ रख कर सहला जो दो ।
हों भटकते कदम लाख किसी के वो सम्भल जाते हैं।।

निष्कपट साधना जो नित्य ही सहज करते रहें।
परमेश्वर अखिल विश्व के दिख हमें जाते हैं।।

यह सत्य है कि नर में ही छिपे रहते हैं श्रीहरि नारायण।
समझते-बुझते फिर ना जाने क्यों हम भटक जाते हैं।।

जात-पात,कुल-धरम-भेद सब परे छोड़कर जो बढ़ें।
उर सरोवर निर्मल "नलिन" शतदल खिल जाते हैं।।

गजल-39 दीप जलाते रहिए

दिलों से दिल के दीप जलाते रहिए।
देव दीपावली हर दिन आप मनाते रहिए।।

राम की हस्ती तो कहा नाप सकेंगे हम-आप।
खुद को जरा-जरा उसके पासंग बनाते रहिए।।

बुतों को पूजना भी इबादत है तभी सच्ची। किरदार जब अपने पाकीजगी बढ़ाते रहिए।।

चैन की सांस ना लीजिए मार के संग शैतान पर।
शैतानी सोच पर सवाल खुद की भी उठाते रहिए ।।

माना जख्म गहरे लगे हैं वफा निभाने से।
बीती कड़वी बात पर हर-हाल भुलाते रहिए।।

मकड़ी के जाल की मानिन्द जकड़ लेगी दुनिया।
अपने "उस्ताद"-ए-हुनर से खुद को बचाते रहिए।।

@नलिन #उस्ताद

Saturday, 24 November 2018

गजल-36 बस प्यार से देख लो

बस प्यार से देख लो हमें सलाम हो जाएगा।
लब कहीं गर खिले तेरे तो कलाम हो जाएगा।।

सांस-सांस में जो राम का नाम जपता रहे। रंजो गम से हर एक आराम हो जाएगा।।

वो जिस भी लिबास में आ जाएंगे महफिल में।
देखना फैशन बाजार में आम हो जाएगा।।

लगन होगी जो यारब प्यार में किसी के सच्ची।
आंखों-आंखों से ही दिले पैगाम हो जाएगा।।

खुदा ने जब बरसाई इनायत नाचीज पर।
"उस्ताद"का मशहूर तो नाम हो जाएगा।।

@नलिन #उस्ताद

गजल-35 दिल को बहलाता है

कैसे-कैसे दिल को बहलाता है आदमी।
खुद से तभी खुद को बरगलाता है आदमी।।

दिलों को दिल की बात जब बतलाता है आदमी।
गुनगुनाता तो कभी गजल सुनाता है आदमी।।

कुछ तो चल रहा होता है गुपचुप दिल में उसके।
जुल्फें पेशानी की जब सुलझाता है आदमी।।

दिल बहुत बारीकी से अपना हर पल खंगाले।
तब कहीं खुद को खुद से जगमगाता है आदमी।।

उतर कर गहरे दिल में किसी के जब विचारता है।
फैसला तब कहीं उसका समझ पाता है आदमी।।

"उस्ताद" पहचान ले अपनी तदबीर-ए- ताकत जो।
असल अपनी तकदीर का खुद विधाता है आदमी।।

@नलिन #उस्ताद

Friday, 23 November 2018

गजल-34 चांद रुपहला

किसी तरह मन को हमने दिया बहला अपने लिए।।
वो तो चाहता ही था चांद रुपहला अपने लिए।।

कहां किसी के दिल की धड़कनों को वो गिनेगा।
कमबख्त वो तो है सदा उतावला अपने लिए।।

सिखाया ही नहीं गया ना सुनना बचपन से उसे।
सो हक में ही वो तो चाहता फैसला अपने लिए।।

मुफलिसी के दौर में दिन-रात चबा लोहे के चने।
तिनके-तिनके जोड़ बनाया घोंसला अपने लिए।।

अब रहे सबके दिलों में चैनो अमन सदा। "उस्ताद" क्या चाहिए हमें भला अपने लिए।।

@नलिन #उस्ताद

गजल-33 बहुत सादा सादा

बहुत सादा-सादा सा यार आशियाना है मेरा। दिल मगर देखना बड़ा मस्त सूफियाना है मेरा।।

दरवाजे हैं मगर दस्तक की जरूरत नहीं पड़ती।
खुद के भीतर तो रोज ही आना-जाना है मेरा।।

होंगी टेढ़ी-मेढ़ी राहें किसी शख्स की नजर में। जिंदगी का फलसफा उम्मीद-ए-आशिकाना है मेरा।।

खुदा-ए-नूर अपने जलवों से नवाजे है हर रोज।
बड़ा पुराना दरअसल उससे याराना है मेरा।।

तू है मेरे भीतर ही जब है कायनात सारी।
यहां तो नहीं कोई भी जो अनजाना है मेरा।।

खुद से ही गा-बजा लिया और खुद को ही दाद दे दी।
"उस्ताद" शिवोहम का गीत तो मालिकाना है मेरा।।

@ नलिन #उस्ताद

Thursday, 22 November 2018

गजल-32 लोग आते हैं

लोग आते हैं घर के अब बंजारों की तरह।
पाहुन* भी आते हैं कहां दिलदारों की तरह।।
*मेहमान

जमाने की लगी देखो हवा इन बादलों को भी।
बरसते कहां डोलते हैं बस आवारों की तरह।।

बहती रही दरिया ए जिंदगी हमारे ही सहारों पर।
रहे कोरे भीगे कहां जरा भी हम किनारों की तरह।।

मौत आ गई अब और कितनी बार आएगी भला।
लुत्फ लेंगे असल अब आसमां से सितारों की तरह।।

मां बाप के साए से महरूम मासूम बचपन।
लावारिस फिरते हैं यहां से वहां बेचारों की तरह।।

ठीक से दिखता है ना देता है सुनाई कुछ बुढ़ापे में।
"उस्ताद" मचलता है दिल सदा मगर कुंवारों की तरह।।

@नलिन #उस्ताद

Wednesday, 21 November 2018

श्रीराम नाम महिमा

            श्रीराम नाम महिमा
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

हर सांस-सांस मन राम-राम जो जपता रहे। सघन माया से संसार कि वह बचता रहे।।

कर्मकांड,ध्यान,धारणा इनसे भी है मन सधे। निर्मल मन पर एक राम नाम सब कुछ सधे।।

कोटि-कोटि जन जो इस नाम की शरण लेकर चले।
हर असंभव दुरजेय लक्ष्य को वह प्राप्त करते चले ।

हर नशा व्यर्थ है जब राम नाम लौ तुझमें लगे। झूम-झूम मदहोश हो भीतर ही अपने नाचने लगे।।

अद्भुत विलक्षण इस नाम की महिमा संत गाते मिले।
देह में रहते हुए जीव को फिर सहज मोक्ष मिले।।

कितना भी कोई पातकी,निकृष्ट व्यभिचारी बने।
श्री राम नाम शरणागत ले पुनः पुनीत अधिकारी बने।।

@नलिन #तारकेश

Monday, 19 November 2018

गजल-31 मन गेरुआ

सांई कब रंगोगे तुम मेरा मन गेरुआ।
यूं तो मैंने वसन* देख लिया पहन गेरूआ।।
*कपड़ा

चढ़ते-उतरते,अर्श और फर्श आसमान के। आफताब* करता है उसकी परछन गेरुआ।।
*सूरज

वतन की खातिर जो अपनी देते हैं शहादत। यारों होता है उन सभी का तन-मन गेरुआ।।

सप्तलोकों को देखने की ताकत जो अता फरमाए।
तीसरी हमारी आंख का रंग भी है  गहन गेरुआ।।

राधा-मीरा ने दुनिया जहां से बगावत करी। रग-रग में भरता इंकलाबी रसायन गेरुआ।।

दुआ मांगे तभी तो "उस्ताद"बार-बार रब से यही।
भूल कर वजूद वो अपना पहन नाचे मगन गेरुआ।।

@नलिन #उस्ताद

Sunday, 18 November 2018

गजल-30 पाकीजगी खुद से

याद तुझे मेरी हर हाल आनी होगी।
भूल जाने की बात यार बेमानी होगी।।

गले आ गई अब तो जान आफत में मेरी।
सोच कर यही कि डगर तेरी भुलानी होगी।।

तू जैसा है मुझे कबूल है हर तरह से।
बता फिर भला क्यों कोई शै छुपानी होगी।।

खरीद लो जो चाहे धन-दौलत से तुम।
पाकीजगी तो खुद से कमानी होगी।।

प्यार,दुआ भरे या अश्क मेरी झोली में।
फकीर को कबूल तेरी हर निशानी होगी।।

भला क्या है कहो ढका-छुपा रहता खुदावंद से।
उसे बता फिर"उस्ताद"क्यों कोई बात बतानी होगी।।

@नलिन #उस्ताद

Friday, 16 November 2018

गजल-29 पवनचक्की की तरह

पवनचक्की की तरह मन ताबड़तोड़ चलता है।
अच्छे बुरे विचारों के संग गजब दौड़ता है।।

लहरें उठती है समंदर में जैसे पूनम की रात। मन तो हम सब का वैसा हर पल,दिन-रात बहकता है।।

हिमालय सा ठंडा तो ज्वालामुखी सा है कभी उफनता।
गिरगिट के जैसे मन मेरा भी हजारों रंग बदलता है।।

धोखाधड़ी करने में है खुद से भी बड़ा होशियार।
जिद पूरी करने को जिरह अजीबो-गरीब करता है।।

लाख समझाओ नेक रास्ते पर चलने को इसको।
बुराई पर ये तो और-और सरपट फिसलता है।।

मन को जो जीत सके तो "उस्ताद" बन जाए हर कोई।
हौंसला इंसा तो मगर ऐसा विरले ही बनता है।।

Thursday, 15 November 2018

गजल-28 ददॆ तो होते हैं

ददॆ तो होते हैं हमें सबक सीखने को।
गलतियां जो करीं उन्हें बस सुधारने को।।

उनसे जो हम करने लगें हैं मोहब्बत।
गमे इंतहा की असल मौज देखने को।।

रास्ते जुदा-जुदा हैं तो चल यूं ही सही।
मिलना पर जरूर कभी हमसे झगड़ने को।।

बातों से निकाल ही लेते हैं बात कोई न कोई।
ढूंढते हैं मौका कुछ लोग जो अक्सर उलाहने को।।

अंगारों पर चलने की कोशिशें बचपना हैं।
झुलसती जिन्दगी बढो जब मायने भरने को।।

"उस्ताद" तुम भी कसम से ना,भोले हो बड़े।
पीते हो इतनी क्यों महज गजल लिखने को।।

@नलिन #उस्ताद

Wednesday, 14 November 2018

गजल-27 बच्चा

दिल में हमारे बड़ा मासूम रहता है बच्चा।
जरा में रूठे और जरा में हंसता है बच्चा।।

दुनिया के पेंचोखम से नादान,अलहदा है।
तभी तो मस्त हो कुछ भी कर सकता है बच्चा।।

फूलों की तरह तितलियों के जज्बात समझता।
भरा सादगी से तभी तो महकता है बच्चा।।

सहने को सह सकता है हर मुश्किलों का दौर। बिना मां बाप के पर बड़ा तरसता है बच्चा।।

कभी तो है लगता पागल,सिरफिरे हैं हम ही । दुनियादारी को असल तो समझता है बच्चा।।

जमाना है बदल रहा मगर तेजी से अब तो।
कौड़ीयों के भाव सबको बेचता है बच्चा।।

छू लूं आसमां को या सोख लूं समंदर एक घूंट में।
"उस्ताद"का दिल तो ताउम्र सारी रहता है बच्चा।।

Tuesday, 13 November 2018

गजल-23

वक्त की मार पड़ी और बेसहारा हो गए।
भंवर वो छोड़ कश्ती हमसे किनारा हो गए।।

दिल लगाकर गैर से वो अंजान बने रहे। सबकी नजरों में तो हम बस बेचारा हो गए।।

कौन सा नापाक करम था जो ना किया उसने।
उल्टे तोहमत मढ रहे कि वो नकारा हो गए।।

जो अपनी जमानत पर मुंह छुपाते रहे।
वो ही कहते हैं आप आवारा हो गए।।

अपने पहलू में जो दी जगह हुजूर ने हमें। सबकी आंखों के चहेते हम सितारा हो गए।।

भीतर की रोशनी में जो अपनी नहा चुके। "उस्ताद" वो ही सब का सहारा हो गए।।

@नलिन  #उस्ताद

Monday, 12 November 2018

गजल- 22

जलवों का हर तरफ तेरे ही एक शोर है।
होती तेरे नाम से मेरी अब भोर है।।

उसके किस्सों की चर्चा कब तक करूं।
नशा तो उसका उतरा पोर-पोर है।।

बनो चाहे खलीफा कितने ही बड़े तुम।
उसके हाथों में रहती सब की डोर है।।

उठो,जागो,समझो अभी भी वक्त है।
बार-बार हमें कहता वो झकझोर है।।

नजरों से मिलाकर नजरें बात करता नहीं। लगता है कोई तो उसके दिल में चोर है।।

लाख समझाओ दो दुहाई ऊंच-नीच की।
चाह पर अपनी कहां चलता मगर जोर है।।

हमने तो उसे अब अपना "उस्ताद" बना लिया।
इनायतों का कहां उसकी बता ओर-छोर है।।

@नलिन #उस्ताद

Tuesday, 6 November 2018

गजल-17

सबको दिपावली की ढेर सारी बधाई
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घर-घर लो हो गई हर तरफ रोशनी दिवाली में।
उत्साह,उल्लास,उमंग कि बोहनी दिवाली में।।

लक्ष्मी खिलखिला नाचती डूब के गहरे जश्न में।
रिद्धि-सिद्धि संग गणेश की खूब छनी दिवाली में।।

मची खूब होड़ देखो एक दूजे का करने को मुंह मीठा।
लज्जत-ए-पकवानों की खुशबू तो है महकनी दिवाली में।।

परिधानों में बढ़कर एक से एक सजे हैं सभी। वणिकों* की भी बढ़ रही है आमदनी दिवाली में।।*व्यापारी

क्या खूब जमीं से आसमां तक दिख रहे आतिशबाजी के नजारे।
फुहारों से इंद्रधनुषी सजी मस्त रजनी* दिवाली में।।*रात

इल्तजा बस यही है उस अपने परवरदिगार से।
दिलों में हो"उस्ताद"सब के रोशनी दिवाली में।।

@नलिन #उस्ताद