Friday, 16 November 2018

गजल-29 पवनचक्की की तरह

पवनचक्की की तरह मन ताबड़तोड़ चलता है।
अच्छे बुरे विचारों के संग गजब दौड़ता है।।

लहरें उठती है समंदर में जैसे पूनम की रात। मन तो हम सब का वैसा हर पल,दिन-रात बहकता है।।

हिमालय सा ठंडा तो ज्वालामुखी सा है कभी उफनता।
गिरगिट के जैसे मन मेरा भी हजारों रंग बदलता है।।

धोखाधड़ी करने में है खुद से भी बड़ा होशियार।
जिद पूरी करने को जिरह अजीबो-गरीब करता है।।

लाख समझाओ नेक रास्ते पर चलने को इसको।
बुराई पर ये तो और-और सरपट फिसलता है।।

मन को जो जीत सके तो "उस्ताद" बन जाए हर कोई।
हौंसला इंसा तो मगर ऐसा विरले ही बनता है।।

No comments:

Post a Comment