Sunday 18 November 2018

गजल-30 पाकीजगी खुद से

याद तुझे मेरी हर हाल आनी होगी।
भूल जाने की बात यार बेमानी होगी।।

गले आ गई अब तो जान आफत में मेरी।
सोच कर यही कि डगर तेरी भुलानी होगी।।

तू जैसा है मुझे कबूल है हर तरह से।
बता फिर भला क्यों कोई शै छुपानी होगी।।

खरीद लो जो चाहे धन-दौलत से तुम।
पाकीजगी तो खुद से कमानी होगी।।

प्यार,दुआ भरे या अश्क मेरी झोली में।
फकीर को कबूल तेरी हर निशानी होगी।।

भला क्या है कहो ढका-छुपा रहता खुदावंद से।
उसे बता फिर"उस्ताद"क्यों कोई बात बतानी होगी।।

@नलिन #उस्ताद

No comments:

Post a Comment