Saturday, 24 November 2018

गजल-35 दिल को बहलाता है

कैसे-कैसे दिल को बहलाता है आदमी।
खुद से तभी खुद को बरगलाता है आदमी।।

दिलों को दिल की बात जब बतलाता है आदमी।
गुनगुनाता तो कभी गजल सुनाता है आदमी।।

कुछ तो चल रहा होता है गुपचुप दिल में उसके।
जुल्फें पेशानी की जब सुलझाता है आदमी।।

दिल बहुत बारीकी से अपना हर पल खंगाले।
तब कहीं खुद को खुद से जगमगाता है आदमी।।

उतर कर गहरे दिल में किसी के जब विचारता है।
फैसला तब कहीं उसका समझ पाता है आदमी।।

"उस्ताद" पहचान ले अपनी तदबीर-ए- ताकत जो।
असल अपनी तकदीर का खुद विधाता है आदमी।।

@नलिन #उस्ताद

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