Friday, 23 November 2018

गजल-33 बहुत सादा सादा

बहुत सादा-सादा सा यार आशियाना है मेरा। दिल मगर देखना बड़ा मस्त सूफियाना है मेरा।।

दरवाजे हैं मगर दस्तक की जरूरत नहीं पड़ती।
खुद के भीतर तो रोज ही आना-जाना है मेरा।।

होंगी टेढ़ी-मेढ़ी राहें किसी शख्स की नजर में। जिंदगी का फलसफा उम्मीद-ए-आशिकाना है मेरा।।

खुदा-ए-नूर अपने जलवों से नवाजे है हर रोज।
बड़ा पुराना दरअसल उससे याराना है मेरा।।

तू है मेरे भीतर ही जब है कायनात सारी।
यहां तो नहीं कोई भी जो अनजाना है मेरा।।

खुद से ही गा-बजा लिया और खुद को ही दाद दे दी।
"उस्ताद" शिवोहम का गीत तो मालिकाना है मेरा।।

@ नलिन #उस्ताद

No comments:

Post a Comment