Monday, 19 November 2018

गजल-31 मन गेरुआ

सांई कब रंगोगे तुम मेरा मन गेरुआ।
यूं तो मैंने वसन* देख लिया पहन गेरूआ।।
*कपड़ा

चढ़ते-उतरते,अर्श और फर्श आसमान के। आफताब* करता है उसकी परछन गेरुआ।।
*सूरज

वतन की खातिर जो अपनी देते हैं शहादत। यारों होता है उन सभी का तन-मन गेरुआ।।

सप्तलोकों को देखने की ताकत जो अता फरमाए।
तीसरी हमारी आंख का रंग भी है  गहन गेरुआ।।

राधा-मीरा ने दुनिया जहां से बगावत करी। रग-रग में भरता इंकलाबी रसायन गेरुआ।।

दुआ मांगे तभी तो "उस्ताद"बार-बार रब से यही।
भूल कर वजूद वो अपना पहन नाचे मगन गेरुआ।।

@नलिन #उस्ताद

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