Tuesday, 13 November 2018

गजल-23

वक्त की मार पड़ी और बेसहारा हो गए।
भंवर वो छोड़ कश्ती हमसे किनारा हो गए।।

दिल लगाकर गैर से वो अंजान बने रहे। सबकी नजरों में तो हम बस बेचारा हो गए।।

कौन सा नापाक करम था जो ना किया उसने।
उल्टे तोहमत मढ रहे कि वो नकारा हो गए।।

जो अपनी जमानत पर मुंह छुपाते रहे।
वो ही कहते हैं आप आवारा हो गए।।

अपने पहलू में जो दी जगह हुजूर ने हमें। सबकी आंखों के चहेते हम सितारा हो गए।।

भीतर की रोशनी में जो अपनी नहा चुके। "उस्ताद" वो ही सब का सहारा हो गए।।

@नलिन  #उस्ताद

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