Wednesday, 19 December 2018

गजल-56 हमें तो पीना

हमें तो पीना मंजूर चुपचाप जहर है।
बहस बेवजह करना लोगों से दूभर है।।

हंसते हुए आंसू,रोने में हंसी आने लगी।
कहो पागलपन है कि यह तवाजुन* भरपूर है।।*संतुलन

अश्क भी हमारे हजारों रंग समेटे हुए।
खीझ,प्यार,गुबार दिखे जिनमें बराबर है।।

कहो किसे हम चाहें किससे यहां नफरत करें।
निभाने का किरदार यह तो बस एक अवसर है।।

आने से है मौज* उठी या मौज* से वह आया।*आनन्द
छोड़ो कैसे या क्यों मिल गया रब ये सबर है।।

वो जब यक़ीन मुझ पर ही कतई नहीं करता।
"उस्ताद"-ए-इल्म की कहो उसे क्या कदर है।।

@नलिन #उस्ताद

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