Wednesday, 5 December 2018

गजल -2

ना तुम,ना दिल की वो धड़कन ही काम आई।
लो आज फिर तन्हाई की वही शाम आई।।

सोचा था देखेंगें ख़्वाबों में तस्वीर तुम्हारी। 
हकीकत में कहां मगर नींद बिछुड़ कर एक गाम आई।।         

सुना तो था हमने हिना है एक दिन रंग लाती।
खोटे नसीब पर कहाँ जरा कहो लगाम आई।।

हर दिन,हरेक रात बड़ी मुश्किल से कटी कसम से।
ना जाने क्यों भला हमें ना मौत तमाम आई।।

उनकी बेरुखी भला अब कहाँ है किसी से छुपी।
"उस्ताद" फिर भी मगर उन्हें ना आराम आई।। 

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