Tuesday, 11 December 2018

गजल-49 जब से आया हूं तेरे शहर से

जब से आया हूं तेरे शहर से।
नशा तारी* है तेरी मेहर** से।।
*समाधि सी अवस्था **दया

तितलियों सी यादें मंडरा रहीं।
मिटती नहीं अब अपने पैकर* से।।
*जिस्म

ख्वाब था या हकीकत क्या कहूं।
कुछ था मिला जो मुझे मुकद्दर से।।

दिल में एक अजब मौज,सुकूं नेमत भरी है।
जिल्लत,अवसाद,रंज अब सभी छूमंतर से।।

जाने पहचाने रास्ते कहां थे "उस्ताद" के।
खुलते रहे मगर पतॆ दर पतॆ सफर से।।

@नलिन #उस्ताद

No comments:

Post a Comment