अपने रंग से है करती हैरान कुदरत हमको। मगर फुर्सत कहां,जो हो जरा गुमान हमको।
पत्ता-पत्ता,जर्रा-जर्रा खिले सुबो-शाम इसका।
नब्ज पर रखें हाथ,पर कहां ये अरमान हमको।।
कहीं समंदर,कहीं पहाड़,कहीं दरिया आसपास।
होती नहीं कभी देखने से,इनको थकान हमको।।
बता सकें कुछ इसका,हुस्नो जमाल तुमको। देखो आकर खुद ही,है कहाँ जुबान हमको।। मन तो है,कुदरत की बाँहों में रहे बस हम।
शहरों ने किया है,यूं बहुत परेशान हमको।।मिट्टी,आसमां,आग,पानी और हवा देखो।
रब ने दी"उस्ताद"असल पहचान हमको।।
@नलिन#उस्ताद
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Thursday, 1 August 2019
गजल-197
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