Tuesday, 13 August 2019

गजल203

बड़ी मासूमियत ओढ वो जख्म देता है।
जब तक समझूं वो गहरा और होता है।।चेहरे की लर्जिश से भाँप ही नहीं सकते।
वो हर कदम मुझे तो धोखा ही देता है।। शेखी बधारेगा अपने काम की इस कदर। लगे सांस भी जैसे वो शायद ही लेता है।।
एहसान जता-जता फिर मार डालेगा।
बस ये जताने वो तुझे जिंदा रखता है।।
ये तो अपने-अपने हुनर की है बात साहिब।
गुजर पत्थरों से दरिया शरबती बनता है।।
लबों से चाहे छलकाओ तुम लाख हँसी।
दर्द सबका ही वो चेहरे से पढ सकता है।
जुटा जो तेरी राहें हर हाल आसां करने को।
जीना उसका ही तू रोज बेहाल करता है।।
फरिश्ते से नेक दिल इंसा को चिढाना बार-बार।
दिल में रख हाथ बता क्या ये तेरा फर्ज बनता है।।
रोने-चिल्लाने पर तेरे हंसते हैं यहां चुपके से होंठ।
यूं ही नहीं हर दर्द तू अपना चुपचाप सहता है।।
खानदानी रईस है"उस्ताद"अपना खुदा के फजल से।
लिए जख्म सीने में होंठों में हँसी तभी तो चलता है।।
@नलिन#उस्ताद

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