Sunday, 18 August 2019

गजल-206

कुछ न कुछ उधेड़बुन दिल में हर वक्त चलती है।
पानी से जैसे बिछुड़ जाए तो मछली तड़फती है।।
यूँ यादें सब तेरी दरिया में बहा तो दी हमने।
बहाने की वो तस्वीर मगर दिल में बसती है।
कहां जंगलों में चलते-चलते पगडंडियाँ बना देना।
मगर अब तो अपने आसपास जंगली घास उगती है।।
जेहन में थरथराती हैं यादों की रंगीन गठरियाँ।
दरियाई पुल पर जैसे कभी कोई ट्रेन चलती है।।
झरने,पहाड़,दरख्त और चुलबुली ठंडी हवा।
अब हकीकत में भी ये बात ख्वाब लगती है।
करो लाख जद्दोजहद बदलने को नसीब अपना।
बगैर रब की मर्जी कहां तेरी कुछ भी चलती है।।
पिए हैं रंजो गम के जाम कितनेखुद पता नहीं।
नशीली हँसी यूँ ही नहीं उस्ताद छलकती है।।
@नलिन#उस्ताद

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