शक्कर को जैसे चींटी ढूंढ सकती है।
ये आंख क्यों नहीं तुझे देख पाती है।।
तेरे जलवों की बदौलत हर सांस चलती है।
समझ मुझे क्यों नहीं मगर ये बात आती है।।
बार-बार,न-न करते भी डूब जाना गर्त में।
हर बार अक्ल क्यों ये मेरी मात खाती है।।
गाहे-बगाहे तू तो जगाता ही रहता है हमें।
कुंभकरण सी नींद कहाँ पर टूट पाती है।।
पूरी शिद्दत से डूबना होता है सजदे में हमें।
आधी-अधूरी कोशिशें कहां रंग लाती है।।
वैसे तो इल्म है कि तुझसे फासला है नहीं।
दिल को मगर ये बात कहाँ यकीं आती है।।
"उस्ताद"तेरीचौखट से जाऊँ अब खाली हाथ।
इनायते करम मगर ये तेरे सवाल उठाती है।।
@नलिन#उस्ताद
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Saturday, 31 August 2019
गजल-224 तुझे देख पाती है
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