Saturday 31 August 2019

गजल-224 तुझे देख पाती है

शक्कर को जैसे चींटी ढूंढ सकती है।
ये आंख क्यों नहीं तुझे देख पाती है।।
तेरे जलवों की बदौलत हर सांस चलती है।
समझ मुझे क्यों नहीं मगर ये बात आती है।।
बार-बार,न-न करते भी डूब जाना गर्त में।
हर बार अक्ल क्यों ये मेरी मात खाती है।।
गाहे-बगाहे तू तो जगाता ही रहता है हमें।
कुंभकरण सी नींद कहाँ पर टूट पाती है।।
पूरी शिद्दत से डूबना होता है सजदे में हमें।
आधी-अधूरी कोशिशें कहां रंग लाती है।।
वैसे तो इल्म है कि तुझसे फासला है नहीं।
दिल को मगर ये बात कहाँ यकीं आती है।।
"उस्ताद"तेरीचौखट से जाऊँ अब खाली हाथ।
इनायते करम मगर ये तेरे सवाल उठाती है।।
@नलिन#उस्ताद

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