Saturday, 24 August 2019

गजल-214 अलहदा मिजाज

अलहदा मिजाज मेरा तुम न समझोगे कभी। जानते हैं फुर्सत में तुम न इतनी रहोगे कभी।
जितना हमने कह दिया जुबां और कलम से। वो कहने की हिम्मत तुम न कर सकोगे कभी।
अच्छा ये बताओ जहां से बिछड़े थे हम-तुम।
आकर वहीं क्या तुम फिर हमसे मिलोगे कभी।।
एक दूजे बिना है जीवन अधूरा हमारा-तुम्हारा।
ये हकीकत खुदा के वास्ते तुम क्या मानोगे कभी।।
माना तेरे दीदार को हर कोई यहाँ बेचैन है।ख्वाब में सही लेकिन हमारे आओगे कभी।।
चलो न भी सुनो उस्ताद एक बात हमारी।
मगर क्या अपने दिल की भी सुनोगे कभी।।
@नलिन#उस्ताद

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