जवानी के कल्ले जब फूटते हैं।
बदसूरत भी हंसी बनते हैं।।
सादगी से वो निकलें फिर भी।
दिल तो सबके मचलते हैं।।
तुम भी वहीऔर हम भी वही।
जाने फिर क्यों झगड़ते हैं।।
कीचड़ में न सने खेलते हों अगर।
बच्चे सुअर के भी भले लगते हैं।।
अदा से सिगरेट के छल्ले उड़ाते युवा।
सितारा खुद को फिल्मी समझते हैं।।
लाचार बूढ़े मां बाप अब तो।
घर-घर खानाबदोश रहते हैं।।
मुफ्त का माल उड़ाएं किस तरह से।
सभी इसी तिकड़म में दिखते हैं।।
"उस्ताद"न समझो खुद को तीरंदाज।
शागिर्द भी धुरन्धर बड़े मिलते हैं।।
@नलिन#उस्ताद
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Thursday, 8 August 2019
गजल-204
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