Tuesday, 13 August 2019

गजल-208

नजरअंदाज करे कोई उसे ये है गंवारा नहीं। देखता रहे और एकटक ये भी सुहाता नहीं।।
बिछुड़ना तो तय है हरेक का हरेक से यहाँ। जाने क्यों प्यार से फिर कोई बतियाता नहीं।
हर सांस गिनती की मिली है तो जी रहे हम।
यूँ जिन्दगी जीने की रही खास तमन्ना नहीं।।
मिलेगा कोई राह तो दुआ-सलाम हो जायेगी।
दर पर जा मिलना किसी से हमें सुहाता नहीं।
हम तो चल रहे अपनी ही धुन में हो कर मस्त।
अब निगाहों में सिवा उसके कोई बसता नहीं।।
हर कोई यहां उस्ताद है एक दूसरे का तय मानो।
अल्लाह के वास्ते किसी से शेखी बघारना नहीं।।
@नलिन#उस्ताद

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