गुरु गुड़ ही रहा और चेला तो ये शक्कर हो गया।
सो मधुमेह का उस पर ज्यादा ही असर हो गया।।
दौलत,रसूख की हेकड़ी में मशगूल था वो इतना।
अबकी मगर चला नहीं झाँसा तो अंदर हो गया।।
निजामत*ने उसके गड़बड़झालों की लुंगी खोल दी।*(सु)शासन
गैरत में डूबकर कहां फिर भी वो कातर*हो गया।।*शर्मशार
लगाते रहे हाथ जो दरख्त बेल का अपने नफे की खातिर।
चला तूफान तो उखड़ वही इन पर कहर हो गया।।
जाने कैसी आग है हवस की जो बुझती ही नहीं है।
जलती रहे रूह भी चिता में इनकी ये मुकद्दर हो गया।।
अभी तो क्या है आगे-आगे देखिए "उस्ताद" जी।
स्वच्छ भारत मिशन अब सच में बेहतर हो गया।।
@नलिन#उस्ताद
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Thursday, 22 August 2019
गजल-212
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