Saturday, 31 August 2019

गजल-224 तुझे देख पाती है

शक्कर को जैसे चींटी ढूंढ सकती है।
ये आंख क्यों नहीं तुझे देख पाती है।।
तेरे जलवों की बदौलत हर सांस चलती है।
समझ मुझे क्यों नहीं मगर ये बात आती है।।
बार-बार,न-न करते भी डूब जाना गर्त में।
हर बार अक्ल क्यों ये मेरी मात खाती है।।
गाहे-बगाहे तू तो जगाता ही रहता है हमें।
कुंभकरण सी नींद कहाँ पर टूट पाती है।।
पूरी शिद्दत से डूबना होता है सजदे में हमें।
आधी-अधूरी कोशिशें कहां रंग लाती है।।
वैसे तो इल्म है कि तुझसे फासला है नहीं।
दिल को मगर ये बात कहाँ यकीं आती है।।
"उस्ताद"तेरीचौखट से जाऊँ अब खाली हाथ।
इनायते करम मगर ये तेरे सवाल उठाती है।।
@नलिन#उस्ताद

Friday, 30 August 2019

गजल-223:सदा चलो

थोड़ा बनाकर फासला चलो।
खुद को तुम अब भुला चलो।।
बहुत हुई मौज मस्ती यहाँ।
समेट ये सब तमाशा चलो।।
राह जाती है जो उसकी दर पर।
कदम उस तरफ तुम बढा चलो।।
देर-सबेर की है बात नहीं कुछ।
खुद को बस तुम बहला चलो।।
दरिया,तूफां तो सब मिलेंगे सफर में।
मगर हौंसला बुलन्द तुम बढ़ा चलो।।
कहेगा हर कोई कुछ ना कुछ तुझे।
सुन"उस्ताद"की बस सदा चलो।।
@नलिन#उस्ताद

गजल-222 उदास रहा

बिछड़ के तुझसे बहुत उदास रहा।
जाने फिर क्या यहाँ मैं तलाश रहा।।
कह ना सका चाहे तुझसे मगर।
मेरे लिए तू तो हमेशा खास रहा।।
मिली खुशियाँ उसे थीं ढेर सारी मगर।
बेवजह वो बस हर बात उदास रहा।।
ओढ़ लिबास मुल्क की नुमाइन्दगी का।
सिक्का वो खोटा करता बकवास रहा।।
अपने गुरूर में न बोला मैं, न तो तू ही।
अब भला क्यों खुश्क गला खराश रहा।।
रूठे भी तो,मिल गए गले कुछ देर में।
वक्त ऐसा,बता अब किसके पास रहा।। 
वक्त के साथ अब तो लो"उस्ताद"भी।
माशाअल्लाह खुद को खूब तराश रहा।।
@नलिन#उस्ताद

Thursday, 29 August 2019

गजल-221:लटके झटके

अपनी हल्की-फुल्की रचनाएं जिन्हें फेसबुक पर डालता रहा हूँ उन्हें गजल न कहकर "मजल"कहूँगा क्योंकि ये सिर्फ मजे अर्थात आनन्द हेतु हैं।और गजल लिखने सी आला दर्जे की काबिलियत खुद में पाता भी नहीं हूँ।ईश्वर "रसो वै सः"(तैत्तिरीयोपनिषत्) कहा गया है। रस अर्थात आनन्द स्वरूप सो ये रचनाएं उसके ही प्रसाद स्वरूप लिख पाने से उसे ही समर्पित हैं।☆☆☆

सीखे न थे हमने दुनियावी लटके-झटके।
सो लोग बात-बेबात खूब देते रहे झटके।।
कहना है कब क्या और किस से कितना। जो सीख जाते तो खाने न पड़ते झटके।।
समझते हैं जिनको हम खास अपनों में।
तोड़ दिल हमारा हैं देते वो गहरे झटके।। बकरा बनाने की जुगाड़ में सब हैं दिखते।
किसी को हलाल तो किसी को देते झटके।।
सबको यूँ तो नचाता है वही "उस्ताद" अपना।
मगर निकली आह जब कमर में पड़े झटके।।
@नलिन#उस्ताद

Tuesday, 27 August 2019

गजल-219वादा रहा••••उम्र भर

वादा रहा खुद को तुझे हम भुलाने न देंगे उम्र भर। 
कभी हिचकी तो कभी ख्वाब से जगायेंगे उम्र भर।।
जिसकी मिट्टी ने धड़कना हमारे दिल को सिखाया।
उसकी खातिर जिस्म ओ जान लुटायेंगे उम्र भर।।
वतन की खातिर जो शहीद हो गए बेखौफ होकर।
गीत उनकी याद में शहादत के गायेंगे हम उम्र भर।।
मजलूम,मजबूर जो थक हार खड़े हैं हाशिए पर।
अब दिलों में उनके भी उम्मीदे लौ जगायेंगे उम्र भर।।
जाति,मजहब की दीवारें तोड़ लगा सबको गले।
नया रौशन मुल्क ये अपना बनाएंगे उम्र भर।।
आदम तो रब ने बना दिया मगर इंसानियत जिसने दी।
चौखट पर हम ऐसे"उस्ताद"की सर झुकायेंगे उम्र भर।।
@नलिन#उस्ताद

Sunday, 25 August 2019

गजल-215 एक कदम चला हूँ मैं

महज एक कदम प्यार का चला हूँ मैं।
सो कहाँ अभी खुद से ही मिला हूँ मैं।।
लगाकर हजार मुखौटे चेहरे में अपने।
असल ये जिंदगी कहाँ जी सका हूँ मैं।।
कहने को कहा था तेरे बगैर न जिऊँगा।
तुझसे बिछुड़ के मगर कहाँ मरा हूँ मैं।।
जो दिख रहा हूँ मंजिल पर सलामत।
सो गर सच कहूँ हजार बार गिरा हूँ मैं।।
प्यार का उन्मान*पढ़ा था कि थोड़ा सब्र रहे।*माप/नाप
सो अब तलक मौत के सामने जिंदा हूँ मैं।।
यूं तो देखा है"उस्ताद"आईना कई बार।
बस कभी-कभार एक झलक दिखा हूँ मैं।।
@नलिन#उस्ताद

Saturday, 24 August 2019

गजल-214 अलहदा मिजाज

अलहदा मिजाज मेरा तुम न समझोगे कभी। जानते हैं फुर्सत में तुम न इतनी रहोगे कभी।
जितना हमने कह दिया जुबां और कलम से। वो कहने की हिम्मत तुम न कर सकोगे कभी।
अच्छा ये बताओ जहां से बिछड़े थे हम-तुम।
आकर वहीं क्या तुम फिर हमसे मिलोगे कभी।।
एक दूजे बिना है जीवन अधूरा हमारा-तुम्हारा।
ये हकीकत खुदा के वास्ते तुम क्या मानोगे कभी।।
माना तेरे दीदार को हर कोई यहाँ बेचैन है।ख्वाब में सही लेकिन हमारे आओगे कभी।।
चलो न भी सुनो उस्ताद एक बात हमारी।
मगर क्या अपने दिल की भी सुनोगे कभी।।
@नलिन#उस्ताद

कृष्ण जन्मोत्सव

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत बधाई
卐卐卐卐ॐॐॐॐॐ卐卐卐卐
राधारानी जो आकर मेरे उर में बसी है।
कबसे श्रीकृष्ण का वो पथ देख रही है।।
बेचैन है प्यारे से अपने मिलने की खातिर।
आते नहीं तो बेचारी बड़ा कुम्हला रही है।।
प्रीत में कमी है यही सोच के बार-बार वो।
जैसे-तैसे खुद को ही ढांढस बंधा रही है।।
यूँ आयेंगे मोहन कभी ना कभी तो उसके।
मगर राधा भोली-भाली जल्दी मचा रही है।। द्वापर की राधा सा हाय कहाँ भाग्य मेरा।
यही सोच के मन में बस कसमसा रही है।।भ्रमर सा मन ये टिकता कहां एक पल को।
पाने को सुगन्ध उसकी ये तो मचल रही है।।
सुन लो जरा नटवर ये प्रार्थना है तुमसे मेरी।
वरना ये तो मेरा भी जीना दूभर कर रही है।।
@नलिन#तारकेश

Thursday, 22 August 2019

कृष्ण जन्म बधाई

कृष्ण जन्म की बहुत बहुत बधाई
☆☆☆☆¤¤ॐ¤¤☆☆☆☆

प्रीत जैसे छलकती है तेरे लिए राधा हृदय में हर घड़ी।
श्याम छलकेगी क्या ये बूंद भर भी हृदय में मेरे कभी।।
जन्म- जन्मों की राह पथरीली सदा से मेरी रही।
घर्षण से नाम की माला जिह्वा चिकनी करेगी कभी।।
सोच में जब पड़ता हूं तेरे तो लगे आंसू की झड़ी।
अब भुला दे तू बनके निष्ठुर तो ये है मर्जी तेरी।।
कृष्ण के रूप में कभी-कभी यूं तो सुनता हूं मैं बंसी तेरी।
लेकिन बता सच क्या होगी प्रत्यक्ष मुलाकात तेरी-मेरी।।
बहुत तू है सताया अब और ना सताना तुझे सौगंध है मेरी।
आ अब शीघ्र आ जा नलिन मुख याचक की झोली है फैली।।
बना ले तू मुझे जी महारास में नित्य तारकेश गोपी।
अनुनय-विनय जो भी समझ ले बस यही है एक मेरी।।
@नलिन#तारकेश

गजल-212

गुरु गुड़ ही रहा और चेला तो ये शक्कर हो गया।
सो मधुमेह का उस पर ज्यादा ही असर हो गया।।
दौलत,रसूख की हेकड़ी में मशगूल था वो इतना।
अबकी मगर चला नहीं झाँसा तो अंदर हो गया।।
निजामत*ने उसके गड़बड़झालों की लुंगी खोल दी।*(सु)शासन
गैरत में डूबकर कहां फिर भी वो कातर*हो गया।।*शर्मशार
लगाते रहे हाथ जो दरख्त बेल का अपने नफे की खातिर।
चला तूफान तो उखड़ वही इन पर कहर हो गया।।
जाने कैसी  आग है हवस की जो बुझती ही नहीं है।
जलती रहे रूह भी चिता में इनकी ये मुकद्दर हो गया।।
अभी तो क्या है आगे-आगे देखिए  "उस्ताद" जी।
स्वच्छ भारत मिशन अब सच में बेहतर हो गया।।
@नलिन#उस्ताद

Wednesday, 21 August 2019

गजल-210

अभी तू बेवफा है मगर ये भी यकीं है।
होने में तुझे बावफा अब देरी नहीं है।।
ये जिन्दगी अजब पहेली है यारब।
दिलों में अश्क तो लबों पर हँसी है।।
उड़ने को तो वो उड़ गया आसमां में।
कहाँ कदमों के नीचे उसके जमीं है।।
रखने बाकी हैं कदमों के निशां अभी तो।
उमर तो हुई मगर कहाँ हौंसले में कमी है।।
पाल कर मुगालता*चल तू भी देख ले।*भम्र
यूँ ऐसे नहीं जुल्फ"उस्ताद"की पकी है।।
@नलिन#उस्ताद

Tuesday, 20 August 2019

गजल-208

तेरी चौखट से दिल लगाने की जरूरत नहीं है।
लाख कर तू दावा मगर तुझमें शराफत नहीं है।।
पता चला मगर तब तक मेरी उम्र गुजर गई।
जो दिल दिया वो तेरे पास सलामत नहीं है।।
खुद मुझे यकीं न था पर देखा तो अब जा के हुआ।
सच ही कहते हैं लोग ठीक तेरी सोहबत नहीं है।।
खुदा के नाम पर कत्लोगारत दुनिया में करना।
बेगैरत ये तरीका तो मुस्तहक*इबादत नहीं है।।*उपयुक्त
यूँ पतंग सी आवारगी दिनभर हवा में तू कर रहा।
पर तुर्रा ये कि मुझसे बात की भी फुरसत नहीं है।।
हमें खबर है दुनियावी तौर-तरीकों की मगर क्या करें।
कहना सच को सच"उस्ताद"खिलावत नहीं है।।

Monday, 19 August 2019

गजल-207

             हमारा जम्मू-कश्मीर
          ☆☆☆☆☆☆☆☆☆
दिल में लगी थी जो चोट वो सबको दिखा रहे।
हालात जल्द सब ठीक हों खुदा से ये मना रहे।।
केसर की महक से गमकती वादियों में अब।
लो कौमी तराने जोश से हम नए हैं गा रहे।।
दीवारें खड़ी थीं जो फासलों की सब तोड़ दीं।
शोख जाम मस्ती भरे संग साथ छलका रहे।।
यूँ देर तो हुई मगर नासूर न बने इसके वास्ते।
हौले से जख्म पर प्यार का मरहम लगा रहे।
खाईयाँ थी जो खड़ी हुईं वक्त के साथ-साथ।
सो उम्मीद ओ एतबार के पुल नए बना रहे।।
संतूर,रबाब,तुंबक*भरेंगे फिर से रूहानी सुकून।*कश्मीरी वाद्य यंत्र
सुफियाना माहौल की मिलके जोत सब जला रहे।।
ताज बन जो दमकता रहा माँ के सिर शुरूआत से।
बिखरे हीरे उस्ताद उसमें जल्द जड़ने जा रहे।।
@नलिन#उस्ताद

Sunday, 18 August 2019

गजल-206

कुछ न कुछ उधेड़बुन दिल में हर वक्त चलती है।
पानी से जैसे बिछुड़ जाए तो मछली तड़फती है।।
यूँ यादें सब तेरी दरिया में बहा तो दी हमने।
बहाने की वो तस्वीर मगर दिल में बसती है।
कहां जंगलों में चलते-चलते पगडंडियाँ बना देना।
मगर अब तो अपने आसपास जंगली घास उगती है।।
जेहन में थरथराती हैं यादों की रंगीन गठरियाँ।
दरियाई पुल पर जैसे कभी कोई ट्रेन चलती है।।
झरने,पहाड़,दरख्त और चुलबुली ठंडी हवा।
अब हकीकत में भी ये बात ख्वाब लगती है।
करो लाख जद्दोजहद बदलने को नसीब अपना।
बगैर रब की मर्जी कहां तेरी कुछ भी चलती है।।
पिए हैं रंजो गम के जाम कितनेखुद पता नहीं।
नशीली हँसी यूँ ही नहीं उस्ताद छलकती है।।
@नलिन#उस्ताद

गजल-205

घर मेरा दूर था फिर भी वो मुझसे मिलने आया।
उमस थी आसपास पर सुकूने हवा बनके आया।।
बता तू ही दोस्त था या था वो रकीब*मेरा।*शत्रु
जला कर घर मेरा जो मुझे बताने आया।।
ऊँचाई में उड़ते परिंदे तो देते हैं सुकून सबको।
न जाने फिर क्यों वो उनके पर कतरने आया।।
नाराज होना तो मेरा जायज था मगर ये बता।
तू भला दो कदम मुझे क्यों नहीं मनाने
आया।।
घाट फैलाए जो धोबी ने मर्दाने,जनाना कपड़े।
न हवा,न सूरज कोई नहीं फर्क बताने आया।।
पर्दानशीन रहना तो छोड़ दिया है अब उसने।
है शहर में रिवाज लेने का सेल्फी जबसे आया।।
जान पहचान कुछ न थी पर दिल बहुत बड़ा था।
दर्द भुला अपना तभी तो वो हमें हँसाने आया।।
दोस्ती में भला कब से हया,हिचक होने लगी।
लगा उसे गलत हूं मैं तो धौल जमाने आया।।देख रहा हूं बस चुपचाप बिना होठों को जुंबिश दिए।
बढ़ाने जख्म कौन तो कौन मरहम लगाने आया।।
जाहिलों की बस्ती रहने लगा है "उस्ताद" जबसे।
हर कोई पूरी शिद्दत उसे ही शागिर्द बनाने आया।।
@नलिन#उस्ताद

Friday, 16 August 2019

कलियुग की रामलीला

कलियुग की रामलीला
☆☆☆¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤☆☆☆

मुँह फैलाए बैठे हैं केकई,मंथरा तो जरा  परवाह नहीं।
जायेंगे वनवास श्रीराम इस बार तो कतई नहीं।।
दशशीश की जहां तक बात है तो ये भी जान लो।
मर रहा वो तो कूटनीति से ही इसमें रहा संदेह नहीं।।
माननीय तो असल में है बस जनता-जनार्दन जनाब।
जो लाटसाहब बनेंगे ज्यादा तो उनकी भी है खैर नहीं।।
नए निजाम की है हर बात सौ फ़ीसदी पटरी पर चल रही।
अब ज्यादा तीन-पाँच मक्कारों की देर तक चलने वाली नहीं।।
बाली,सुबाहु,मारीच आदि सब राम-पक्ष में हैं लड़ रहे।
अमृत भी नाभि-कुंड लंकेश के,लवलेश अब बचा नहीं।।
यूँ हिम्मत तो नहीं जो विभीषण आ रहे थोक के भाव में।
पर नजर तो होगी रखनी जिससे हो गफलत कोई नहीं।।
हनुमान ने इस बार भी पराक्रम अतुल्य- अद्भुत दिखा दिया।
राक्षसों से सब विषैले साँप मारे और गदा भी चलाई नहीं।।
राम तो राम ठहरे;लखन,भरत,शत्रुध्न सब हैं वीर जोश से डटे हुए।
करने साकार रामराज,कटिबद्ध जन भी अब दिखते पीछे नहीं।।
सबके साथ विश्वास से होगा निश्चय ही नया विकास अब देखना।
आना स्वर्ण युग का आर्यावर्त में लगता अब नामुमकिन नहीं।।
@नलिन#तारकेश

Wednesday, 14 August 2019

गजल-204

तिरंगे की मेरे आन-बान-शान देखिए हुजूर।छूने को बेकरार ये आसमान देखिए हुजूर।। हौसले,उमंग की शहनाई बजे धूमधाम चारों तरफ।
मुस्तकबिल है तैयार लिए नई पहचान देखिए हुजूर।।
विश्वास की कलाई पर गणतंत्र का रक्षाबंधन हो रहा।
चेहरे पर नाज़नीन की बढी है मुस्कान देखिए हुजूर।।
रवायतों का सड़ी-गली मिटना शुरू हो गया है अब।
झूमते अंतरिक्ष को चूमने निकला चंद्रयान देखिए हुजूर।।
अभिनंदन हो रहा जल-थल-नभ सब जगह
भारतीय सैन्य शौर्य का।
दुश्मन हैं डरे-दुबके,परेशां हमारे अभियान से देखिए हुजूर।।
युवा जोश में कहते सोने की बुलबुल फिर बनेगा मुल्क हमारा।
करेंगे वंदेमातरम जब हम सभी तन-मन से गान देखिए हुजूर।।
नामुमकिन कुछ भी तो अब लगता नहीं नए निजाम में।
उम्मीदे रोशनी विश्व में करने लगी राष्ट्रगान देखिए हुजूर।।
@नलिन#उस्ताद

Tuesday, 13 August 2019

गजल203

बड़ी मासूमियत ओढ वो जख्म देता है।
जब तक समझूं वो गहरा और होता है।।चेहरे की लर्जिश से भाँप ही नहीं सकते।
वो हर कदम मुझे तो धोखा ही देता है।। शेखी बधारेगा अपने काम की इस कदर। लगे सांस भी जैसे वो शायद ही लेता है।।
एहसान जता-जता फिर मार डालेगा।
बस ये जताने वो तुझे जिंदा रखता है।।
ये तो अपने-अपने हुनर की है बात साहिब।
गुजर पत्थरों से दरिया शरबती बनता है।।
लबों से चाहे छलकाओ तुम लाख हँसी।
दर्द सबका ही वो चेहरे से पढ सकता है।
जुटा जो तेरी राहें हर हाल आसां करने को।
जीना उसका ही तू रोज बेहाल करता है।।
फरिश्ते से नेक दिल इंसा को चिढाना बार-बार।
दिल में रख हाथ बता क्या ये तेरा फर्ज बनता है।।
रोने-चिल्लाने पर तेरे हंसते हैं यहां चुपके से होंठ।
यूं ही नहीं हर दर्द तू अपना चुपचाप सहता है।।
खानदानी रईस है"उस्ताद"अपना खुदा के फजल से।
लिए जख्म सीने में होंठों में हँसी तभी तो चलता है।।
@नलिन#उस्ताद

गजल-202

लो हो गया मुकम्मल एक रुका हुआफैसला आज।
हुआ देर सही वतनपरस्ती का नमक ये अता आज।
डल झील सी आंखों में कश्मीर का अटका था जो सपना।
शाहे मोदी की मर्दानगी से वो हकीकत बन गया आज।।
मादरे वतन का जो ताज था जम्मू-कश्मीर, लद्दाख हमारा।
असल दिख रहा वो तो बखूबी जगमगाता हुआ आज।।
जश्ने माहौल दिखा हर एक रियासते हिन्द की अवाम।
मरकजी-महकूम*से जब लद्दाख को नवाजा गया आज।।*केन्द्रीय शासन
लो अब सही मायने कश्मीर हमारा जन्नत
बन रहा।
लगाई थी बुरी नजर उनका तो मुँह काला पड़ा आज।।
हर तरफ अमन ओ चैन की हवा झूमेगी मुस्तकबिल*बनके।*भविष्य
सुनहरे हफॆ*में लिखा इतिहास का बेजोड़
सफहा**जुड़ा आज।।*अक्षर **पन्ना
"उस्ताद"की मुराद,अल्लाह ने इनायते करम बख्श दी।
लो बहारों ने बरसाए हर तरफ फूल तपते रेगिस्तां आज।।
@नलिन#उस्ताद

गजल-208

नजरअंदाज करे कोई उसे ये है गंवारा नहीं। देखता रहे और एकटक ये भी सुहाता नहीं।।
बिछुड़ना तो तय है हरेक का हरेक से यहाँ। जाने क्यों प्यार से फिर कोई बतियाता नहीं।
हर सांस गिनती की मिली है तो जी रहे हम।
यूँ जिन्दगी जीने की रही खास तमन्ना नहीं।।
मिलेगा कोई राह तो दुआ-सलाम हो जायेगी।
दर पर जा मिलना किसी से हमें सुहाता नहीं।
हम तो चल रहे अपनी ही धुन में हो कर मस्त।
अब निगाहों में सिवा उसके कोई बसता नहीं।।
हर कोई यहां उस्ताद है एक दूसरे का तय मानो।
अल्लाह के वास्ते किसी से शेखी बघारना नहीं।।
@नलिन#उस्ताद

Sunday, 11 August 2019

गजल-207

सावन सोमवार की बधाई
जय शिव शम्भो
चुपचाप तो वो सभी के दिल में रहता है।
बतियाने की फिक्र उससे कौन करता है।।
न बोलो सिर्फ एक बार निगाहें मिला लो।
वो तो फिर खुद-ब-खुद बेकरार रखता है।।
बड़ा अजब है उसकी घुंघराली जुल्फों का जादू।
उलझा के जो फिर उसमें तुझे दिन-रात रखता है।।
हर जगह महसूस होगी उसकी तुम्हें धड़कन।
इनायत महज जब वो एक बार करता है।।
जब तक न पाओ उसे तुम इत्मिनान न करना।
यूँ सच ये कि वो कुछ करने से कहाँ मिलता है।।
हां नन्हे बच्चे से बन सब उस पर ही छोड़ दो।
तब तो फिर हर हाल वो तेरे पास ही रहता है।।
कहता है हर कोई"उस्ताद"बार-बार बस यही सबसे।
खुद का भुला दे जो वजूद वो बस उसे दिखता है।।
@नलिन#उस्ताद

गजल-206

पुत्रदा एकादशी पर सभी को बहुत बधाई के साथ:
                    मां-बाप
  ●●□●●□●●□●●□●●□●●□
याद हर बार आते जो उनसे हम बिछड़ते हैं। सामने तोअक्सर मगर नजरअंदाज करते हैं। उनकी ही इनायत करम का है ये सिला।
वजूद जो हम आज अपना देख पाते हैं।।
दर्द-तकलीफ सबसे निजात मिलती है हमें।
अपने ऑचल से चुपचाप जो हवा करते हैं।।
हर दिन होली और रात दीपावली उनकी।
नेमत से संगे साए जो मां-बाप खेलते हैं।।
हर सांस है उनका अजीम एहसान हम पर।
"उस्ताद" ये कहाँ हम भला भूल सकते हैं।।
@नलिन#उस्ताद

Saturday, 10 August 2019

गजल-205

तूने जो मुझे बेवजह भुला दिया।
निगाह ने मेरी ही मुझे गिरा दिया।।
न जाने क्या खता हो गई मुझसे।
अंजाना जो मुझे तूने बना दिया।।
थका-मांदा आया है जो मुसाफिर।
बता पानी क्या ठन्डा पिला दिया।।बावफा तू और बेवफा हम हो गए।
तूने चर्चा ये खूब झूठा फैला दिया।।
खैर जो हुआ वो तो हो ही गया।
हमने भी तेरा नाम भुला दिया।।
यूँ भी कहाँ है फुर्सत हमें तो अब।
जब से चेहरा रब ने दिखा दिया।।
प्यार की बरसात बाहर-भीतर हो रही।
उस्ताद कदमों में जो दिल बिछा दिया।।
@नलिन#उस्ताद

Thursday, 8 August 2019

गजल-204


जवानी के कल्ले जब फूटते हैं।
बदसूरत भी हंसी बनते हैं।।
सादगी से वो निकलें फिर भी।
दिल तो सबके मचलते हैं।।
तुम भी वहीऔर हम भी वही।
जाने फिर क्यों झगड़ते हैं।।
कीचड़ में न सने खेलते हों अगर।
बच्चे सुअर के भी भले लगते हैं।।
अदा से सिगरेट के छल्ले उड़ाते युवा।
सितारा खुद को फिल्मी समझते हैं।।
लाचार बूढ़े मां बाप अब तो।
घर-घर खानाबदोश रहते हैं।।
मुफ्त का माल उड़ाएं किस तरह से।
सभी इसी तिकड़म में दिखते हैं।।
"उस्ताद"न समझो खुद को तीरंदाज।
शागिर्द भी धुरन्धर बड़े मिलते हैं।।
@नलिन#उस्ताद

Wednesday, 7 August 2019

203-गजल

दफ्तरों में सांप-सीढ़ी खेला जा रहा।
चढा सीढ़ी,सांप से कटवाया जा रहा।। जमाने की जरूरतें इस कदर बदल रहीं।
रवायतों को भली भी मिटाया जा रहा।।
इल्मे इम्तहां से खौफजदा हैं मां-बाप, बच्चे।
मेहमाने खुसूसी भी घर से निकाला जा रहा।।
खुद की खातिर खजाना बहा दिया उसने।
अवाम को तो बस उल्लू बनाया जा रहा।।
निगाहें मय का असर गजब ये है जनाब।
हाथ का जाम भी अब तो छूटा जा रहा।।
यूँ तो मोहब्बत की तख्ती लगाए बैठा है  वो।
पीठ पीछे पर चुपचाप वार किया जा रहा।।
पड़े जो काम तो बड़े एहतराम बुलाता मिला।
अंगूठा वक्त इकराम मगर दिखाया जा रहा।।
हवा में दिखा तलवारबाजी,लूटें कुछ वाहवाही।
कलम का सिपाही यहाँ,बेमौत मरता जा रहा।।
"उस्ताद"लेता है सदके अपने साँवले सरकार के।
जो बनके अनजान रास पनघट रचाता जा रहा।।
@नलिन#उस्ताद

Tuesday, 6 August 2019

गजल-201

यहाँ किससे भला आप दिल को लगाइए जनाब।
झूठे,लबार हर जगह कुकुरमुत्ते से पाइए जनाब।।
वो तो निपट अंधा ही समझता है हमको।
जो धूप से बचने गॉगल चढ़ाइए जनाब।। हाथ मिलाने की जरूरत नहीं किसी से यूँ तो यहाँ।
मिलाना ही जो पड़े तो बघनखे लगाइए जनाब।।
रोशनी,कलम,दवात से छत्तीस का आंकड़ा।
ऐसों को भला क्या आप समझाइए जनाब।।
रस्सी जली है पर देखिए तो ऐंठ इनकी।
बहुत हुआ इन्हें न मुँह लगाइए जनाब।।
जरूरत पड़ेगी तो वो फिर फैलाए हाथ आयेगा।
इन्हें जरा इनकी औकात तो दिखाइए जनाब।।
"उस्ताद"आपकी तो कट जाएगी जैसे-तैसे।
गुरु मंत्र शागिदॆ भी कुछ दे जाइए जनाब।।
@नलिन#उस्ताद

Sunday, 4 August 2019

गजल-199

मेरे भीतर में एक बच्चा साथ बसता है।
उमर बढ रही पर वो बच्चा ही रहता है।।
हर बड़ी-छोटी बात दखल खूब करता है।
सोता हूँ तो भी तो मुझे ये जगा दिखता है।।
बात-बात में मुझसे रूठ जाए ये अक्सर।
थक-हार इसे तो मनाना रोज ही पड़ता है।।
यार किससे कहूँ,सितम ओ नखरे इसके।
ये जब मुझे मेरा ही एक अक्स लगता है।।
ऐसा नहीं कि सिफॆ परेशानी का सबब हो।
कई बार खुश्बू सा भी ये बड़ा महकता है।।
बच्चा तो बच्चा ही है,शोख मासूमियत भरा।
जान-बूझ भला क्यों तू बेवजह बहकता है।।
जीतेगा जमाने भर का"उस्ताद"दिल तभी तू।
हर घड़ी जब तेरे मुताबिक ये बच्चा चलता है।।
@नलिन#उस्ताद

Friday, 2 August 2019

गजल-198

जड़े न जमा लूँ गहरे वो ये डरता है।
हर रोज तभी उखाड़ मुझे देखता है।।
जहां गिरता है वो वहीं पनपने लगता है।
जीने का जज्बा उसमें गहरा दिखता  है।।
सुनो तो सही जरा दिल से कान लगाकर। कुदरत का पत्ता-पत्ता भी कुछ बोलता है।।
जिंदगी ये तेरी कौन जाने कब तक चले।
प्यार बांटने में भला कहाँ कुछ लगता है।।आँख,जिस्म,रूह सब हरे-भरे हो गए।
हर कदम अब सुकूने झरना बहता है।।
वो मुझे चाहता है इस कदर तहे दिल से।
पल भर नहीं तभी तो अकेला छोड़ता है।।दिखाओ सब्जबाग चाहे दुनिया या जन्नत के।
जमीर से कहां असल"उस्ताद"गिरता है।।

@नलिन#उस्ताद

Thursday, 1 August 2019

गजल-197

अपने रंग से है करती हैरान कुदरत हमको।    मगर फुर्सत कहां,जो हो जरा गुमान हमको।
पत्ता-पत्ता,जर्रा-जर्रा खिले सुबो-शाम इसका।
नब्ज पर रखें हाथ,पर कहां ये अरमान हमको।।
कहीं समंदर,कहीं पहाड़,कहीं दरिया आसपास।
होती नहीं कभी देखने से,इनको थकान हमको।।
बता सकें कुछ इसका,हुस्नो जमाल तुमको। देखो आकर खुद ही,है कहाँ जुबान हमको।। मन तो है,कुदरत की बाँहों में रहे बस हम।
शहरों ने किया है,यूं बहुत परेशान हमको।।मिट्टी,आसमां,आग,पानी और हवा देखो।
रब ने दी"उस्ताद"असल पहचान हमको।।
@नलिन#उस्ताद