Friday, 31 May 2019

153-गजल

आदमी जो रियासत लेकर फिरता है।
वजूद अपना वही जमींदोज करता है।।सुझाई तो थीं बातें उसे कई अपने तजुर्बे से।
बेटा मगर आजकल कहां बाप की सुनता है।
हौसला गजब का तो देखिए नन्हे चराग का।
जानकर भी हश्र अपना ऑधी से भिड़ता है।
आंखों में बियाबांन रेगिस्तान है उसकी।
कानून मगर कहां उस पर पसीजता है।। मुफलिसी के दौर पिसता है आम आदमी
सियासत को लेकिन हंसी ठठ्ठा सूझता है
सियासत का अभी सीखा ही नहीं है ककहरा।
सो हर कही बात उसकी बवंडर उठता है।
जुल्मों सितम सहे खून के आंसू बहाकर।
लब खुले तो सितमगर काहे भड़कता है।।
हकीकत उगल दो जबान से खुद ही अपनी।
जाने क्यों जमाना तुम्हें उस्ताद समझता है।।

@नलिन#उस्ताद

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