Wednesday, 22 May 2019

146-गजल

लो कत्ल की आंखिर ये रात आ गई।
लबों पर सबके एक ही बात आ गई।।
जीतेगा झूठ या उगेगा सूरज सच का।
चलो देखें घर किसके बरात आ गई।।
बरगलाने के सिवा नहीं था काम जिनका।
लो सामने आज उनकी औकात आ गई।।हारना तो तय मान बैठे हैं जब वो खुद ही। दिमाग उनके तभी तो खुराफात आ गई।। लिख के रख लो चाहे तुम रसीदी टिकट पर। आवाम के हिस्से तरक्की की सौगात आ गई  झूमेगा परचम जाहो जलाल* का अब तो। *प्रतिष्ठा
नई लिखने इबारत संग कायनात आ गई।।
खिले"नलिन"दिले झील में क्या खूब "उस्ताद"के।
हर तरफ रंगे केसर की मुल्क में बरसात आ गई।।

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