जाने कैसी-कैसी कवायद कराते हैं लोग। पागल हर घड़ी दूसरे को बनाते हैं लोग।। यहां से वहां,वहां से यहां डालियों में कूदते।अपने को बड़ा होशियार दिखाते हैं लोग।। ऐसा नहीं कि जानते नहीं एक दूसरे को।
काम पर अक्सर पहचान भुलाते हैं लोग।।
यूं तो अकड़ जाती नहीं जली रस्सी सी।
मगर पड़े काम तो गिड़गिड़ाते हैं लोग।।
यूं बन के दुश्मन रहेंगे साथ हर कदम तेरे।दोस्ती मगर कहां अब निभा पाते हैं लोग।।
पुराने दिन औ माहौल सब अब हवा हो गए।
प्यार और जज्बात से तो बरगलाते हैं लोग।।जो चले न कभी दो कदम अपनी समझ से।
उस्ताद वही तो राह सबको सुझाते हैं लोग।।
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Wednesday, 22 May 2019
145-गजल
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