Friday, 10 May 2019

लिख तो सकता हूं

श्यामल,घुंघराले सद्यःस्नाता रूपसी के केशजाल।
लिख तो सकता हूं पर लिखूं क्या इन पर  महाकाव्य?
नख-शिख षोडष श्रृंगार,बढाते हृदय का रक्तचाप।
लिख तो सकता हूं पर लिखूं क्या इन पर महाकाव्य?
आकाश-नील,मदिर-नैन,ब्रह्मांड नचाते दो धनुषचाप।
लिख तो सकता हूं पर लिखूं क्या इन पर महाकाव्य?
रूप,सौन्दयॆ देख उमगता मन,हुलसती श्वांस-प्रश्वांस।
लिख तो सकता हूं पर लिखूं क्या इन पर महाकाव्य?
मधु घोल कूकते,सप्त-स्वर अद्भुत,अनूठे मयूर बाण।
लिख तो सकता हूं पर लिखूं क्या इन पर महाकाव्य?
गजगामिनी,मनभाविनी,मदमस्त इनकी कदम ताल।
लिख तो सकता हूं पर लिखूं क्या इन पर महाकाव्य?
हैं तो चित्र ऐसे अनेक,सवॆत्र निखिल व्याप्त,नयनाभिराम।
लिख तो सकता हूं पर लिखूं क्या इन पर महाकाव्य?
काल की विराट देह,क्षणिक रहते समस्त भोग-विलास।
लिख तो सकता हूं पर लिखूं क्या इन पर महाकाव्य?
पटकती सिर तट पर किनारे, लहर चंचल बार-बार।
लिख तो सकता हूं पर लिखूं क्या इन पर महाकाव्य?
चौरासी कोटी भ्रमणोपरान्त,प्राप्त नरदेह कृपा राम।
लिख तो सकता हूं पर लिखूं क्यों? इन पर महाकाव्य।
"नलिन"निर्मल खिलखिलाता रहे, गड़ी चाहे पंक नाल।
रचना है नवीन शाश्वत,अब अजर-अमर आलोकित महाकाव्य।
सहज,सरल,तन-मन पुनीत,आत्म-रस से पगा महाकाव्य।।

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