Tuesday, 28 May 2019

149-गजल

मुझे तो अभी उसमें गहरे डूबना था।
महकते हुए खूब और खिलना था।।
दोस्त,दिलदार,सब कुछ तो है वो मेरा।
हकीकत को इसी दिल से समझना था।। भटकता रहा जिसे पाने को गली-गली। सामने उसे देख भला क्यों चूकना था।। रिझाने अपने माशूके हकीकी को।
सर से पाॅव पूरा सजना-संवरना था।।
ओढ ली चुनरी जब नाम की उसकी।
बताओ किसी से हमें क्यों डरना था।।
दिखाई राह जो नेक बेजोड़"उस्ताद"ने।
खुद को उसी पर अब ता-उम्र कसना था।।
@नलिन#उस्ताद

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