Tuesday, 21 May 2019

144-गजल

दिल उतार कर तो रख दिया गजल में।
मगर उसे पढ़ा ही नहीं उसने असल में।।
दिल के करीब उसके जितना जा रहा हूं। वजूद उतना ही पिघल रहा दरअसल में।
आसां नहीं कुछ भी आईने में उतारना।
होता है फर्क बड़ा असल ओ नकल में।।
दुनिया की नई खासियत अजब देखिए।
बचाने वाले ही फंस रहे उसके कतल में।
गरीबों के बन मसीहा बहुत लूटा सबको।
रहते हैं हुजूर अब तो ये ठाठ से महल में।
मिट गई शख्सियत अब सारी उस्ताद की
लो झुका जो सर ये सजदे को एक पल में
@नलिन#उस्ताद

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