Friday 17 May 2019

140-गजल

नज़रें मिलती है तो जाम छलक जाते हैं।
आ बज्म में तेरी ये दीवाने बहक जाते हैं।।फुर्सत है किसको जो सुनेगा गम के फसाने तेरे।
हां खुशी में जरूर तेरी उनके चेहरे लटक जाते हैं।।
बचे थोड़े दिन आ जम के झगड़ लें हम-तुम।
चुनावी माहौल यूं भी दिमाग सटक जाते हैं।।
बेवफाई याद आती है जब भी दिल फरेब की।
पुराने जख्म मेरे बलतोड़ बन सिसक जाते हैं।।
पलकों ने जो बंद कर लिए किवाड़ तो भी क्या?
हरकतों से पुतलियों की दिल धड़क जाते हैं।।
जब कभी भी दिखता है वह ख्वाबगाह में हमें अपनी।
गुलमोहर की सुर्ख डालियों से अरमान लचक जाते हैं।।
मिलने की चाह में गुपचुप चाहे लाख तुम रहो।
कमबख्त मगर पांवों के नूपूर खनक जाते हैं।।
वो जानते हैं उस्तादे शागिर्दी जिनके नसीब रही।
आस्ताने उसके मुरझाए गुल भी महक जाते हैं।।

No comments:

Post a Comment