Thursday, 9 May 2019

134-गजल

तेरे शहर में आकर मुझे ये लग रहा है।
हर कोई जैसे एक दूजे को ठग रहा है।।
जान कर भी हकीकत अंजान बने हैं सब।
सीने में बस यही एक सवाल सुलग रहा है।।
शबे गम से घबरा रहे हो अभी से क्यों।
सहरे आफताब तो अभी उग रहा है।।
भुला कर जिसे दरवाजा भेड़ दिया था।
वो आज भी दिमागे खूंटी टंग रहा है।।
बड़ी कमाल की बात है मौजे जिन्दगी में।
हश्र जान कर भी हर कोई बाल रंग रहा है।।
होंगे तेरी जुल्फों के साए के तमन्नाई।
उस्ताद ए मिजाज सबसे अलग रहा है।।

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