यायावर पग मेरे नर्तन करते सुर,ताल,लय मुक्त।
सप्त-भुवन,आकाश-पाताल,दिशा-विदिशा मुक्त।।
दोपहर हो जेठ की या शीत पौष-माघ माह युक्त।
सावन कजरारे घटाटोप या हो वसंत मधुमास युक्त।।
निद्वॆन्द,निश्चिंत,निर्विकार,आशा-निराशा रिक्त।
निरंतर अग्रसर पथ-प्रवाह बहता जा रहा रिक्त।।
कमॆ-प्रारब्ध,पाप-पुण्य,सत्य-असत्य सबसे विरक्त।
श्वांस-प्रश्वांस,गहरी-उथली,बाह्य-भीतर,सदा विरक्त।।
जय-पराजय,यश-अपयश,निन्दा-प्रशंसा से परे सतत।
अग्नि सा उध्वॆगामी तो जल सा अधोगामी बढ रहा सतत।।
तत्पर विचरने ब्रह्मांड,मन-प्राण-काया की तोड़ कारा,शाश्वत।
उन्मुक्त-भाव,कराहते-मुस्कुराते,हांकता आत्म-रथ धाम-शाश्वत।।
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Tuesday, 7 May 2019
यायावर पग मेरे
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