Saturday, 18 May 2019

141-गजल

शहर का मिजाज तेरे बड़ा अलहदा है।
हर शख्स यहां तो रहता खुद से जुदा है।।
महकती हैं गलियां केवड़े सी सारी।
नाम का तेरे ये भी जलवा ए कदा(घर)है।।
इशारों में करता है वो तो बातों सभी।
जुबां से न कहना ये उसकी अदा है।।
हाथों में जुंबिश है दिल में अरमान बड़ा।
उठाऊं बता कैसे जो हुजूर का परदा है।।
वो तो सदा(हमेशा)उतर दिल में देता है दस्तक।
मगर तू बेहोश सुनता कहां उसकी सदा(आवाज) है।
मैखाना बना है उस्ताद दिल अब हमारा।
सो पीने की छूट पूरी तकदीर में बदा है।।

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