Friday, 31 May 2019

153-गजल

आदमी जो रियासत लेकर फिरता है।
वजूद अपना वही जमींदोज करता है।।सुझाई तो थीं बातें उसे कई अपने तजुर्बे से।
बेटा मगर आजकल कहां बाप की सुनता है।
हौसला गजब का तो देखिए नन्हे चराग का।
जानकर भी हश्र अपना ऑधी से भिड़ता है।
आंखों में बियाबांन रेगिस्तान है उसकी।
कानून मगर कहां उस पर पसीजता है।। मुफलिसी के दौर पिसता है आम आदमी
सियासत को लेकिन हंसी ठठ्ठा सूझता है
सियासत का अभी सीखा ही नहीं है ककहरा।
सो हर कही बात उसकी बवंडर उठता है।
जुल्मों सितम सहे खून के आंसू बहाकर।
लब खुले तो सितमगर काहे भड़कता है।।
हकीकत उगल दो जबान से खुद ही अपनी।
जाने क्यों जमाना तुम्हें उस्ताद समझता है।।

@नलिन#उस्ताद

152-गजल

सूरज की तरह जलता रहूंगा।
रोशनी मगर मैं बांटता रहूंगा।।
कोई दे ना दे तवज्जो मुझे।
तूती*सा यूं ही बजता रहूंगा।।*नक्कारखाने में तूती की आवाज/तोते सा पंक्षी
रूठा रहे चाहे वो संगदिल।
ता उमर उसे चाहता रहूंगा।।
मुश्किलें आएं चाहे कितनी भी।
ख्वाबों में सदा रंग भरता रहूंगा।।
थक के गिरूं चाहे हजार बार।
हारे बिना हौंसला चलता रहूंगा।।
नजर न लगे उसे कहीं मेरी चश्मे बद्दूर।
सो काजल सा आंखों में सजता रहूंगा।। मजलूम के हक के खातिर सदा।
कसम उस्ताद यूं ही लड़ता रहूंगा।।

Thursday, 30 May 2019

151-गजल

हर शेर तो दो धारी तलवार होता है।
कौन कहे कहां इसका वार होता है।।
छोटी बहर का या हो बड़ी बहर का।
काम तमाम बखूबी हर बार होता है।।
झुका कनखियों हंस कर जो फेंका तीर तो।
हो चाहे वो संग*दिल पर आर-पार होता है।। *पत्थर
उथला-उथला सा जिस्म तक जो सिमट जाए।
भला कहो ये उनमान*भी कहां प्यार होता है।।
*प्रस्तावना
बेवा की टूटी चूड़ियों या ख्वाब सा नाजुक। हर शेर खुद में बड़ा अजब कुम्हार होता है।।
महज मिसरे दो खोलते राज कायनात के। "उस्ताद"असल फन तो कलमकार होता है।।

Wednesday, 29 May 2019

150-गजल

कलई खोल भी दूं चाहे हर झूठी गिरह की।
मन तो मेरा भी है दाद दूं उसकी जिरह की।।
यूं ही नहीं परचम लहराया है ऊंची चोटियों पर।
पेशानी से टपकती बूंदे होंगी वजह फतह की।।
रात लंबी थी सो बमुश्किल जद्दोजहद बीती।
मिल कर मनाएं जश्न उम्मीद भरी सुबह की।।
हुआ तो हुआ दौर फासलों और बेवफाई का।
आओ करें बातें मगर अब अमन और सुलह की।।
खेल खेलें"उस्ताद"नया कुछ ऐसा कि हर कोई जीते।
छोड़ भी दो पुरानी कवायद ये मात और शह की।।
@नलिन#उस्ताद

Tuesday, 28 May 2019

149-गजल

मुझे तो अभी उसमें गहरे डूबना था।
महकते हुए खूब और खिलना था।।
दोस्त,दिलदार,सब कुछ तो है वो मेरा।
हकीकत को इसी दिल से समझना था।। भटकता रहा जिसे पाने को गली-गली। सामने उसे देख भला क्यों चूकना था।। रिझाने अपने माशूके हकीकी को।
सर से पाॅव पूरा सजना-संवरना था।।
ओढ ली चुनरी जब नाम की उसकी।
बताओ किसी से हमें क्यों डरना था।।
दिखाई राह जो नेक बेजोड़"उस्ताद"ने।
खुद को उसी पर अब ता-उम्र कसना था।।
@नलिन#उस्ताद

148-गजल

कहना दिलाई आजादी हमें उसने है जहालत और भी।
बिना खूं खराबे भगा दिए सारे दुश्मन ये तो शरारत और भी।।
जड़ें उस दरख्त की गहरी दबी हैं ये जान लो दूर तक।
खोखली हो ढहने में लगेगा तभी तो वक्त और भी।।
दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा एक रोज देखना।
चिंता न करो खुलेंगी उसकी नापाक हरकत और भी।।
वक्त करता है इंसाफ हर छोटी बड़ी बात का खुद से।
रखो जरा तुम थोड़ा इत्मिनाने शिद्दत और भी।।
इतना सिर चढ़ाना कभी भी किसी को ठीक नहीं।
बेखौफ तभी तो करता है हर शख्स गलत और भी।।
हकीकते इतिहास लिखा ही नहीं दलाली धंसे हाथ ने।
वरना उधड़ती"उस्ताद झूठ की तुरपनें कुछ और भी।।

Saturday, 25 May 2019

147-गजल

हीरे हो तुम खुद को पहचान लेना।
हकीकत है असली ये मान लेना।।
जितना तराशोगे ददॆ की भट्टी में।
चमकोगे और ज्यादा जान लेना।।
कोयले से ही तो है बनता ये हीरा।
बस एक बार जरा तुम ठान लेना।।
खुद पर करो पूरी शिद्दत से यकीं तुम।
बात-बेबात अच्छा नहीं एहसान लेना।।
बनाओ अगर किसी को भी उस्ताद यार।
ठोक-बजा जरूर उसका इम्तहान लेना।।
@नलिन#उस्ताद

Friday, 24 May 2019

भारत माॅ अभिनंदन

भारत माॅ का अभिनंदन शुभतामयी मंगल नव अलंकरण।
भा युक्त नव संकल्प नव विधान रचा-बसा नव जागरण।
अतुल जयघोष गूंज उठा धरा के कण-कण। अलौकिक राष्ट्रयज्ञ सर्वत्र देदीप्यमान किरण जन-जन प्रमुदित तन-मन अति विलक्षण।
जगमग निर्मल विचार गंगा सदृश संचरण।। अकूत उत्साह-उमंग भरी लहरों का घर्षण। अब क्षूद्र सोच,कर्मों का हो शीघ्र ही तर्पण।। स्व-उद्यम,जागृति अभियान का बढ़े नित्य आकर्षण।
स्वच्छ बने राष्ट्र हमारा है यही तो सवॆश्रेष्ठ आचरण।।
सबका साथ-सबका विकास का सम्यक हो निरूपण।
सदा सर्वोपरि राष्ट्रहित पर सबका रहे पूणॆ समर्पण।।
साहित्य,संगीत,चौंसठ कला का विधिवत हो संरक्षण।
सुमधुर अभिव्यक्ति का चले नित्य अविराम प्रशिक्षण।।
प्रतुल शंखनाद विजयश्री का देश-विदेश  माल्यार्पण।
प्रगति यान शुभ्र त्वरित गति से,भूमंडल हो प्रक्षेपण।।
समरसता,सद्भाव का उर हो सबके जन-मन पोषण।
संस्कृति,श्रेष्ठ,सनातन का अखिल विश्व में ध्वजारोहण।।
विश्व गुरु की पदवी का अब करें पुनः से हम वरण।
वसुधैव कुटुंबकम-भाव अमर,हो अपना सदा समपॆण।।

Wednesday, 22 May 2019

146-गजल

लो कत्ल की आंखिर ये रात आ गई।
लबों पर सबके एक ही बात आ गई।।
जीतेगा झूठ या उगेगा सूरज सच का।
चलो देखें घर किसके बरात आ गई।।
बरगलाने के सिवा नहीं था काम जिनका।
लो सामने आज उनकी औकात आ गई।।हारना तो तय मान बैठे हैं जब वो खुद ही। दिमाग उनके तभी तो खुराफात आ गई।। लिख के रख लो चाहे तुम रसीदी टिकट पर। आवाम के हिस्से तरक्की की सौगात आ गई  झूमेगा परचम जाहो जलाल* का अब तो। *प्रतिष्ठा
नई लिखने इबारत संग कायनात आ गई।।
खिले"नलिन"दिले झील में क्या खूब "उस्ताद"के।
हर तरफ रंगे केसर की मुल्क में बरसात आ गई।।

145-गजल

जाने कैसी-कैसी कवायद कराते हैं लोग। पागल हर घड़ी दूसरे को बनाते हैं लोग।। यहां से वहां,वहां से यहां डालियों में कूदते।अपने को बड़ा होशियार दिखाते हैं लोग।। ऐसा नहीं कि जानते नहीं एक दूसरे को।
काम पर अक्सर पहचान भुलाते हैं लोग।।
यूं तो अकड़ जाती नहीं जली रस्सी सी।
मगर पड़े काम तो गिड़गिड़ाते हैं लोग।।
यूं बन के दुश्मन रहेंगे साथ हर कदम तेरे।दोस्ती मगर कहां अब निभा पाते हैं लोग।।
पुराने दिन औ माहौल सब अब हवा हो गए।
प्यार और जज्बात से तो बरगलाते हैं लोग।।जो चले न कभी दो कदम अपनी समझ से।
उस्ताद वही तो राह सबको सुझाते हैं लोग।।

Tuesday, 21 May 2019

144-गजल

दिल उतार कर तो रख दिया गजल में।
मगर उसे पढ़ा ही नहीं उसने असल में।।
दिल के करीब उसके जितना जा रहा हूं। वजूद उतना ही पिघल रहा दरअसल में।
आसां नहीं कुछ भी आईने में उतारना।
होता है फर्क बड़ा असल ओ नकल में।।
दुनिया की नई खासियत अजब देखिए।
बचाने वाले ही फंस रहे उसके कतल में।
गरीबों के बन मसीहा बहुत लूटा सबको।
रहते हैं हुजूर अब तो ये ठाठ से महल में।
मिट गई शख्सियत अब सारी उस्ताद की
लो झुका जो सर ये सजदे को एक पल में
@नलिन#उस्ताद

Monday, 20 May 2019

143-गजल

जरा एक बार अपनी मुस्कान छलछला दो।
ये दुनिया को तंगदिल हंसना सिखला दो।।
बैठा है दर पर बड़ी उम्मीद से वो तुम्हारी।
जैसे तैसे ही सही उसे कुछ तो बहला दो।।
गमे दरिया खेते हो कश्ती कैसे भला तुम।
राजे दिल कभी अपना हमें भी बतला दो।।
जरूरी नहीं मदद करो दौलत से ही गरीब की।
हो सके तो पीठ उसकी बस चुपचाप सहला दो।।
दिलों को जीतने का फन मुश्किल नहीं है।
नेक नीयत का बस अपनी जादू चला दो।।
तुम हो उस्ताद,कसम से बड़ी अजमत (महानता) वाले।
इनायत करम,जो जाली वजूद,मेरा जला दो।
@नलिन#उस्ताद

Sunday, 19 May 2019

142-गजल

जन्मपत्रिका के फलित पक्ष पर
☆¤☆¤☆¤卐☆¤☆¤☆¤☆
सितारों के अफसाने तो रोज ही पढ़ता हूं।
बना देते हैं क्या से क्या बस ये सोचता हूं।।
सितारों के जहां से ऊपर चलती है हुकूमत उसकी।
पाक नीयत चमकती जिसकी आंखों में देखता हूं।।
हमारी अपनी पहचान से कराते हैं वाकिफ सितारे बखूबी।
सुझायी चलूं न राह उनकी तो बेवजह फिर कलसता हूं।।
तदबीर ही बनती है तकदीर एक रोज जो करते बयां सितारे।
समझ जो आ जाए अगर यही तो कहां भटकता हूं।।
नजूमी*"उस्ताद" सही नस हर शख्स की पकड़ सके।*ज्योतिषी
ये अलग बात खुद को जरा भी नहीं पहचानता हूं।।
@नलिन#उस्ताद

Saturday, 18 May 2019

141-गजल

शहर का मिजाज तेरे बड़ा अलहदा है।
हर शख्स यहां तो रहता खुद से जुदा है।।
महकती हैं गलियां केवड़े सी सारी।
नाम का तेरे ये भी जलवा ए कदा(घर)है।।
इशारों में करता है वो तो बातों सभी।
जुबां से न कहना ये उसकी अदा है।।
हाथों में जुंबिश है दिल में अरमान बड़ा।
उठाऊं बता कैसे जो हुजूर का परदा है।।
वो तो सदा(हमेशा)उतर दिल में देता है दस्तक।
मगर तू बेहोश सुनता कहां उसकी सदा(आवाज) है।
मैखाना बना है उस्ताद दिल अब हमारा।
सो पीने की छूट पूरी तकदीर में बदा है।।

Friday, 17 May 2019

140-गजल

नज़रें मिलती है तो जाम छलक जाते हैं।
आ बज्म में तेरी ये दीवाने बहक जाते हैं।।फुर्सत है किसको जो सुनेगा गम के फसाने तेरे।
हां खुशी में जरूर तेरी उनके चेहरे लटक जाते हैं।।
बचे थोड़े दिन आ जम के झगड़ लें हम-तुम।
चुनावी माहौल यूं भी दिमाग सटक जाते हैं।।
बेवफाई याद आती है जब भी दिल फरेब की।
पुराने जख्म मेरे बलतोड़ बन सिसक जाते हैं।।
पलकों ने जो बंद कर लिए किवाड़ तो भी क्या?
हरकतों से पुतलियों की दिल धड़क जाते हैं।।
जब कभी भी दिखता है वह ख्वाबगाह में हमें अपनी।
गुलमोहर की सुर्ख डालियों से अरमान लचक जाते हैं।।
मिलने की चाह में गुपचुप चाहे लाख तुम रहो।
कमबख्त मगर पांवों के नूपूर खनक जाते हैं।।
वो जानते हैं उस्तादे शागिर्दी जिनके नसीब रही।
आस्ताने उसके मुरझाए गुल भी महक जाते हैं।।

Wednesday, 15 May 2019

139-गजल

यूं तो यहां हर कोई दिखता परेशान है। गनीमत कि कुछ के लबों में मुस्कान है।।
सिर से पांव करते हैं बस लोग मुआयना आपका।
करना आदत में शुमार सबकी लिबास से पहचान है।।
बद से बदतर है जब सूरते हाल गरीब की। इंसाफ का भला बता ये कैसा उनमान है।। रहो सब के साथ फिर भी मस्त तन्हा रहो। खुशहाल जिंदगी की यही तो पहचान है।।पल में फिसलती है पारे सी जिंदगी हाथ से।
जाने भला क्यों मगर तुझे इस पर गुमान है।। पकड़ हाथ मंजिल दिला सकता नहीं कोई।
बढ कर कदम चूमना तो तूने ही सोपान है।।किस-किस की खातिर करें दुआ"उस्ताद" हम।
हर शख्स तेरे शहर का तो बड़ा हलकान है।।

विश्वास मेरा

चाहत यही है तुझसे ना उठे कभी विश्वास मेरा।।
उचारूं नाम कुछ भी"हरि"पर रहे भाव सदा तेरा।।
तेरे एहसास से ही जब महक उठता है संसार मेरा।
क्या होगा हाल मेरा जब करूंगा मैं साक्षात्कार तेरा।।
जाने कितने जनम की साधना से खुलेगा ये भाग मेरा।
यूं क्षणिक भी विलंब अब है बड़ा खटकता तेरा।।
भटकते हुए उमर बड़ी बीत गई जाने मिटेगा कब संताप मेरा।
थके कदम,बुझे मन से भला कब हुआ किसी को दर्शन तेरा।।
सो चाहता हूं बस बना रहे उत्साह-उल्लास यूं ही मेरा।
तू तो है सदा का करुणामयी मिलेगा कभी तो आशीष तेरा।।
खिलेगा हृदय सरोवर एक दिन निर्मल "नलिन" अवश्य मेरा।
जिसमें विराज कर खिलखिलायेगा "तारकेश"स्वरूप मस्त तेरा।।

Tuesday, 14 May 2019

138-गजल

ठोक बजाकर परखिए पूरे इत्मिनान से।
ऐसे न तौलिए हुजूर बस एक अनुमान से।।
हम तो हैं सोने से सौ टके खरे हर हाल में।
डर कहां तपेंगे आग में बेहिचक शान से।।
काट दे सर तलवार से चाहे कोई हमारा।करते कभी सौदा नहीं अपन ईमान से।।
हम तो हैं बन्दे सभी उस एक नूर के।
है फिर भेद क्यों इंसान का इंसान से।।
फासलों की सड़ी बू भी मिट जाएगी।
महक उठेंगे जो गुल तेरी जुबान से।।
हर गाम*बदलता है जब वक्ते मिजाज।*कदम
रहते हो भला क्यों तुम सदा परेशान से।।
रख के आईना खुद से हिसाब लेते हैं हम।
डरते नहीं कभी"उस्ताद"किसी इम्तिहान से।।
@नलिन#उस्ताद

Monday, 13 May 2019

137-गजल

उसकी यादों से लचक जाता है वो।
यूं सच तो है कि बहक जाता है वो।।
गुलमोहर की तरह खिला देख उसको।
खुद सुखॆ गुलाब सा गमक जाता है वो।।
वो न मिले अगर करके वादा कभी तो। उससे कहां?खुद से बिदक जाता है वो।।
यूं जब तलक रहती है उम्मीद मिलने की। लो भीतर ही कई बार चहक जाता है वो।।
मां के आंचल की नमी से पिघल कर।
बच्चों सा अक्सर सिसक जाता है वो।।
कहा कहां जाता है हर बात को जबान से। आंख में नासमझ तभी खटक जाता है वो।।
बिखेर कदमों में"उस्ताद"के अपना वजूद।
हीरे सा दिलों में सबके चमक जाता है वो।।

Saturday, 11 May 2019

136-गजल

समझ शराब को शरबत पी रहा हूं।
बड़े आराम नसीबे गुरबत* पी रहा हूं।।
*परवशता
आसान है जब कीचड़ आफताब*पर मलना। *सूरज
चुपचाप यारों की देखो तोहमत पी रहा हूं।।
मुश्किल तो था मगर जिन्दगी जी सका। परवरदिगार की जो सोहबत पी रहा हूं।।  मेहरबां हुआ वो हम पर इतना ज्यादा।
आंखों से अब उसकी जन्नत पी रहा हूं।। 
गलियों में तेरे शहर की जो इमामत* की थी कभी।*नमाज पढने का काम
यादे गम पुरानी शराब सी वो फुरसत पी रहा हूं।।
कौन जाए संगदिल जमाने से दिल लगाने। उतर खुद में अब रूहानी दौलत पी रहा हूं।।
गए दिन "उस्ताद" अब तो हंसी दिन हमारे। शागिर्दों कि आजकल नसीहत पी रहा हूं।।

135-गजल

मच गया कोहरामे बयान हुआ तो हुआ।
बैल आ मुझे मार ऐलान हुआ तो हुआ।।
सना खूनी हाथ कत्लोगारत में साफ दिखा।
गिले शिकवों से वो अनजान हुआ तो हुआ।।
है मसीहा वो बदहाल मुफलिसों का।
उसे अब भी ये गुमान हुआ तो हुआ।।
निभा दुश्मनों से दोस्ती अपनों से रार।
आवाम अगर परेशान हुआ तो हुआ।।
इस हद तक गिर गए हैं हुजूरे आला। बलिदान का अपमान हुआ तो हुआ।।
दुनिया जाए भाड़ में अपन को है क्या।
लूट-खसोट ही अरमान हुआ तो हुआ।।
दरबदर की ठोकरें ही अब हैं नसीब में।
तेरा ये सहारा एहसान हुआ तो हुआ।।दिलायेगा सबको न्याय अब तो वो ही।
"उस्ताद" अपना बेईमान हुआ तो हुआ।।

Friday, 10 May 2019

लिख तो सकता हूं

श्यामल,घुंघराले सद्यःस्नाता रूपसी के केशजाल।
लिख तो सकता हूं पर लिखूं क्या इन पर  महाकाव्य?
नख-शिख षोडष श्रृंगार,बढाते हृदय का रक्तचाप।
लिख तो सकता हूं पर लिखूं क्या इन पर महाकाव्य?
आकाश-नील,मदिर-नैन,ब्रह्मांड नचाते दो धनुषचाप।
लिख तो सकता हूं पर लिखूं क्या इन पर महाकाव्य?
रूप,सौन्दयॆ देख उमगता मन,हुलसती श्वांस-प्रश्वांस।
लिख तो सकता हूं पर लिखूं क्या इन पर महाकाव्य?
मधु घोल कूकते,सप्त-स्वर अद्भुत,अनूठे मयूर बाण।
लिख तो सकता हूं पर लिखूं क्या इन पर महाकाव्य?
गजगामिनी,मनभाविनी,मदमस्त इनकी कदम ताल।
लिख तो सकता हूं पर लिखूं क्या इन पर महाकाव्य?
हैं तो चित्र ऐसे अनेक,सवॆत्र निखिल व्याप्त,नयनाभिराम।
लिख तो सकता हूं पर लिखूं क्या इन पर महाकाव्य?
काल की विराट देह,क्षणिक रहते समस्त भोग-विलास।
लिख तो सकता हूं पर लिखूं क्या इन पर महाकाव्य?
पटकती सिर तट पर किनारे, लहर चंचल बार-बार।
लिख तो सकता हूं पर लिखूं क्या इन पर महाकाव्य?
चौरासी कोटी भ्रमणोपरान्त,प्राप्त नरदेह कृपा राम।
लिख तो सकता हूं पर लिखूं क्यों? इन पर महाकाव्य।
"नलिन"निर्मल खिलखिलाता रहे, गड़ी चाहे पंक नाल।
रचना है नवीन शाश्वत,अब अजर-अमर आलोकित महाकाव्य।
सहज,सरल,तन-मन पुनीत,आत्म-रस से पगा महाकाव्य।।

Thursday, 9 May 2019

134-गजल

तेरे शहर में आकर मुझे ये लग रहा है।
हर कोई जैसे एक दूजे को ठग रहा है।।
जान कर भी हकीकत अंजान बने हैं सब।
सीने में बस यही एक सवाल सुलग रहा है।।
शबे गम से घबरा रहे हो अभी से क्यों।
सहरे आफताब तो अभी उग रहा है।।
भुला कर जिसे दरवाजा भेड़ दिया था।
वो आज भी दिमागे खूंटी टंग रहा है।।
बड़ी कमाल की बात है मौजे जिन्दगी में।
हश्र जान कर भी हर कोई बाल रंग रहा है।।
होंगे तेरी जुल्फों के साए के तमन्नाई।
उस्ताद ए मिजाज सबसे अलग रहा है।।

Wednesday, 8 May 2019

कवि की ईश-वन्दना

कवि की ईश-वन्दना
☆☆☆¤ॐ¤☆☆☆

शब्द-वणॆ की समस्त सुंदर व्यंजना- अभिव्यंजना।
कविता में प्रकट होती  कवि की वस्तुतः ईश-वंदना।।
भाव,चित्र,विषय की चाहे जैसी हो इंद्रधनुषी कल्पना।
कलम उसकी बन तूलिका उकेरती अनंत संभावना।।
स्वयं का भोगा-अभोगा मात्र नहीं अपितु सम्पूणॆ विश्व की चेतना।
कण-कण में व्याप्त गोचर-अगोचर,
अद्भुत-अनूठी महकती संवेदना।।
छलकती-बहकती,नाचती-कूदती,उमगती-ठुमकती कामना।
हर दिशा भाव वेग प्रवाहित,करती बार-बार ज्वार-भाटा का सामना।।
शिल्प पच्चीकारी,अलंकरण,वाग्विलास की दुस्सह साधना।
सरल,सहज,सुबोध प्रत्येक मन-प्राण को स्नेह से बुहारना।।
स्थूल,सूक्ष्म,कूट अनेक गुप्त-प्रकट,पुष्ट-अपुष्ट भावना।
मां वागीश्वरी श्रीचरण समर्पित नित्य अपनी लघु-दीर्घ याचना।।

Tuesday, 7 May 2019

यायावर पग मेरे

यायावर पग मेरे नर्तन करते सुर,ताल,लय मुक्त।
सप्त-भुवन,आकाश-पाताल,दिशा-विदिशा मुक्त।।
दोपहर हो जेठ की या शीत पौष-माघ माह युक्त।
सावन कजरारे घटाटोप या हो वसंत मधुमास  युक्त।।
निद्वॆन्द,निश्चिंत,निर्विकार,आशा-निराशा रिक्त।
निरंतर अग्रसर पथ-प्रवाह बहता जा रहा रिक्त।।
कमॆ-प्रारब्ध,पाप-पुण्य,सत्य-असत्य सबसे विरक्त।
श्वांस-प्रश्वांस,गहरी-उथली,बाह्य-भीतर,सदा विरक्त।।
जय-पराजय,यश-अपयश,निन्दा-प्रशंसा से परे सतत।
अग्नि सा उध्वॆगामी तो जल सा अधोगामी बढ रहा सतत।।
तत्पर विचरने ब्रह्मांड,मन-प्राण-काया की तोड़ कारा,शाश्वत।
उन्मुक्त-भाव,कराहते-मुस्कुराते,हांकता आत्म-रथ धाम-शाश्वत।।

Sunday, 5 May 2019

133-गजल

गजल तराशना,मढना कहां आसान होता है।
दर्दे फसल काटना भी एक इम्तिहान होता है।।
वो जो आएं दूर गली पर हमारी बिन बताए।घर बैठे हमें सब हाल दिले जुबान होता है।।
उनके हमारे बीच की राजदारी वो भला क्या समझेंगें।
तमाशाबीनों को कहां मयस्सर पढना ये दीवान होता है।।
आफताब सहेजते हैं जो घर के कोनों में तदबीर से।
तकदीर का हरकारा तो उन पर मेहरबान होता है।।
आशिक की आंखों में जो नूरे काजल सा है जगमगाए।
"उस्ताद"आसां कहां बांचना वो इश्के उनमान होता है।।