Friday, 9 May 2014

डिब्बा -संस्कृति 

अगर आज कोई
बचा-खुचा अभिमन्यू
आतताइयों से घिरा
उन्हें ललकार कर
कह भी रहा हो,"रुको"
अपनी माँ का दूध
पिया है तो दो
मुझे भी हथियार
और फिर देखो
मेरे भी हाथों का कमाल।
तो भला क्यों ?
छोड़ेंगे वो आतताई
भाग्य से मिले
निहत्थे अभिमन्यू को।
वो तो हैं नहीं
फिल्मी गुंडे
जिनको माँ का दूध
निहत्थों पर हाथ
उठाने नहीँ देता।
इनकी नसों में तो
ज़हर उफ़नता है
या फ़िर दूध ही
मगर डिब्बे का। 

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