Wednesday, 7 May 2014

संत सरल चित 

















संत सरल चित जानि सुभाउ सनेहु। बाल विनय सुनी करि कृपा राम चरन रति देहु।।
(बालकाण्ड , दोहा ३ख )

 हे सदगुरु मेरे साईंनाथ सरकार।
आप सदा हैं निर्मल, सहृदय उदार।।

मैं बालक हूँ  मूढ़मति अन्जान।
कर दो कृपा अब तो दयानिधान।।

अन्यथा मैं रोते ही  रह जाउंगा।
राम -चरन की प्रीत कहाँ पाऊँगा।।

ये जीवन भी यूँ ही व्यर्थ चला जायेगा।
तेरे होते भी क्या उद्धार नहीं हो पायेगा।।

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