Sunday 18 May 2014

लघु - कथा 3, 4

दुःख -सुख :

वे दोनों सगे भाई थे। दोनों को तार से पिताजी के सख्त बीमार होने की ख़बर मिली थी। बड़े भाई तो अपने पूरे परिवार के साथ आये थे लेकिन छोटा भाई अकेला आया था। पिताजी की उम्र थी भी ऐसी की कभी भी जिन्दगी का "पारा "हाथ से फिसल सकता था। भाग्यवशात् पिताजी स्वस्थ हो गए। वह भाई जो पूरा परिवार लाया था दुखी था कि नोट तो इतने लगाये पर काम कुछ भी न बना। अब फिर आना पड़ेगा। छोटा भाई खुश था कि चलो अच्छा हुआ नहीं तो बड़े भैय्या पूरे गाँव में इम्प्रेशन मार लेते।




अंतर :

 कुछ युवा अपने मित्र "सुखेश "के घर उसे साथ लेने के लिए पहुंचे। देखा उसका अपने बड़े भाई से जबरदस्त तू-तड़ाका चल रहा था। बड़े भाई का कँही कोई लिहाज़ नहीं दिख रहा था। ख़ैर समझा- बुझा के मित्र टहलने निकले। पहाड़ी की  नैसर्गिक सुंदरता का आनंद लेते, बीती बात भुलाते सब आगे बढ़ रहे थे। एक जगह काफी ऊंचाई से गिरते झरने को देख युवा अपने को रोक नहीं सके और तौलिये की कमी को नज़रअंदाज़ कर सब नहाने लगे।सुखेश लेकिन इस तरह खुले में सबके सामने नहाने को तैयार नहीं हुआ। सभी मित्र हैरत में थे, उसके साथ में न नहाने पर क्योंकि अभी कुछ देर पहले ही तो सब मित्रों ने उसे नंगा देखा था।


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