Sunday, 4 May 2014

मुक्त होने के लिये 


















यद्यपि हूँ मैं पातकी,तो भीं छल-प्रपंच से।
हाथ जोड़ हूँ खड़ा, मुक्त होने के लिये।।

पूरी कायनात से विनम्र हो, सद्भाव से।
करता हूँ मैं प्रार्थना, स्नेह -प्यार के लिये।।

दुआ करें,ये आप सभी मेरी ख़ातिर रब से।
 लायक बना ले वो मुझे, अपना होने के लिये।।

वर्ना तो कहाँ बच पाऊँगा, इन हालात में।
सो करना मदद सभी, मेरे जीवन के लिये।।

खुद पर यक़ीं नही, मुझे एक बार से।
अनुनय तभी तो है, आपसे अपने लिये।।

(निज बुधि  बल भरोस मोहिं नाहीं। तातें विनय करउँ सब पाहीं।। -तुलसी रामचरितमानस 1 /8 )

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