Wednesday, 14 May 2014

साईं ग़ज़ल -48.



साईं तेरे रहमो-करम से बस जीवित हूँ मैं।
वैसे तो भीतर से सच में बड़ा व्यथित हूँ मैं।

ज़िन्दगी गुज़र जाए अगर तेरा नाम लिए बगैर।
ऐसी ज़िन्दगी भला किस काम की चिंतित हूँ मैं।।

बहुत दूर-दूर तक उम्मीदे लौ तो दिखती नहीं।
पर हैरान नहीं, तेरी नेमत से हर्षित हूँ मैं।।

दस्तूर हैं महज ये दोस्त,ये दुश्मन दुनिया के।
ज़िन्दगी तो बस एक तेरे भरोसे जीवित हूँ मैं।

कोलाहल तो है दुनिया में हर तरफ़ "उस्ताद"।
शांत, सहज बस तेरी वज़ह से शोभित हूँ मैं। 

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