Tuesday, 6 May 2014

आतंकवादी 



















आतंकवादी कोई तोप नहीं हैं 
जो हट या मिट न सकें 
वो तो "इज्जत का कमरा "
जो खुले आसमान के नीचे 
आँगन में बना है 
के उस दरवाज़े से हैं 
जो खुला छोड़ देने से 
पागलपन की बरसात में 
भीगकर , फूल जाता है 
और बड़ा हो जाने से 
बंद नहीं होता 
"बस "
लेकिन दरवाजे का क्या 
इलाज़ नहीं किया जाता ?
बढ़ने दिया जाता है उसे
अपनी इज़्ज़त का फालूदा 
खुद बनाने के लिए
नहीं, कभी नहीं 
दरअसल ऐसी "नाजुक स्थिति "
समझते ही एकदम 
दरवाजा ठोंक-ठांक कर 
इस लायक कर लेते हैं 
कि चिटकनी लग सके 
फिर चाहे "घर वाले"
थोड़ी देर भड़-भड़ से 
परेशान ही क्यों न हों 
और अगर फिर भी 
"दरवाज़ा " अड़ा 
न बंद हुआ तो 
रन्दा चलाते हैं 
बढ़ी लकड़ी को बराबर 
बारीकी से छीलकर 
चिकनाहट लाने के लिए .

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