Wednesday, 28 May 2014

नील गगन के नीचे 
















अनंत विस्तारमयी,नील गगन के नीचे
जाने कितने वर्षों बाद,लेटा आँखें मीचे।                          

चाँद, सितारे, बादल के फाहे जाने देखो कितने
रूप बदलते एक-एक पल,में लगते बड़े सलोने।

मंद-मंद शीतल समीर,थपकी दे मुझको वैसे
अपने आँचल ले सुलाती,माँ थी मुझको जैसे।

स्वतः आँख खुल गयी,भोर किरण से पहले
पुलकित मन ने मेरे देखे,सपने नए नवेले। 

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