Friday, 23 May 2014

लघु-कथा :5, 6
















चरित्र प्रमाण पत्र :

लम्बा कद, उभरा सीना। आँखों में क्रूर हिंसक बिलौटे की छाप जो पीने की आदत से लाल रंग में रंग जाने से और भी मुखर हो उठी थीं। गोल भरा चेहरा और खींची हुई गुलेल की तरह घनी काली मूंछे। साथ ही साथ हर सेकंड का  टेंटुआ मसलती हुई तेज़ धार वाली जुबान की अंगुलियों के कारण उससे अब हर पान वाला, साइकिल वाला, रिक्शा वाला  …  काँपने लगा था। भला काँपे भी क्यों न। सिर्फ यूनिफार्म ही तो नहीं थी वरना ईश्वर प्रदत्त मुहर लगा चरित्र प्रमाण पत्र तो था ही, पुलिस वाला होने का।



















 गिरगिट :

वो किसी को समझा रहा था कि कोई भी काम छोटा नहीं होता है। आदमी अपने प्रयत्नों से ही तो गागर में सागर भर पाता है और इसी तरह की हज़ार बातें बता वो मोटर में बैठ ५ सितारा होटल गया जहाँ उसे एक ऑफिसियल कॉन्फ्रेंस में भाग लेना था। वो अभी कॉन्फ्रेंस रूम में जाकर बैठा ही था कि ४ सीट छोड़ एक बॆरा ड्रिन्क सर्व करता दिखा। बॆरा उसके छोटे भाई का दोस्त था। कहीं उसने पहचान लिया , हेलो करा तो, उसकी तो सारी इज़्ज़त   …  वो चुपचाप पेपर से अपना चेहरा ढक, पीठ बैरे की ओर करके उकड़ूँ बैठा रहा।

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